नई दिल्ली| ब्रिटेन की दूरसंचार कंपनी वोडाफोन को भारत सरकार के साथ उसके पुराने कर विवाद मामले में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत में जीत हासिल हुई है। यह मामला कंपनी से 22,100 करोड़ रुपये की कर मांग से जुड़ा है।
बहरहाल, फैसले की जानकारी मिलने के बाद सरकार ने कहा है कि वह मध्यस्थता अदालत के फैसले का अध्ययन करेगी और उसके बाद ही आगे की कार्रवाई के बारे में कोई निर्णय लेगी। अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने शुक्रवार को व्यवस्था दी कि भारत की पिछली तिथि से कर की मांग करना दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौते के तहत निष्पक्ष व्यवहार के खिलाफ है।
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ब्रिटिश कंपनी ने एक बयान में कहा, ”वोडाफोन इस बात की पुष्टि करती है कि निवेश संधि न्यायाधिकरण ने मामला वोडाफोन के पक्ष में पाया। यह आम सहमति से लिया गया निर्णय है जिसमें भारत द्वारा नियुक्त मध्यस्थ रोड्रिगो ओरेमुनो भी शामिल हैं। कंपनी के अनुसार, ”न्यायाधिकरण ने कहा कि भारत का कर मांग को लागू करने को लेकर कोई भी प्रयास भारत के अंतरराष्ट्रीय कानून दायित्वों का उल्लंघ्न होगा।
मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने कहा कि उच्चम न्यायालय के निर्णय के बाद भी वोडाफोन से कर मांग करना द्विपक्षीय निवेश संरक्षण संधि के तहत निष्पक्ष और समान व्यवहार की गारंटी का उल्लंघन है। सरकार ने इसी कानून के तहत वोडाफोन द्वारा हचीसन व्हाम्पाओ के भारत में चल रहे मोबाइल फोन कारोबार में 67 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के 11 अरब डॉलर के सौदे में पूंजी लाभकर की मांग की थी। वोडाफोन और हचीसन के बीच यह सौदा 2007 में हुआ था।
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उसके बाद उसी साल मई में संसद ने वित्त कानून 2012 पारित किया जिसमें पूर्व की तिथि से कर के साथ आयकर कानून 1961 के विभिन्न प्रावधानों को संशोधित किया गया। इसके जरिये यह व्यवस्था की गयी कि भारत स्थित संपत्तियों से कमाई वाले किसी सौदे में यदि विदेशी कंपनी में शेयरों का हस्तांरण हुआ है तो ऐसे सौदे से होने वाले लाभ पर पिछली तिथि से कर लगाया जा सकेगा।