नई दिल्ली| सरकार वोडाफोन के साथ बहुचर्चित अंतरराष्ट्रीय कर मध्यस्थता (पंचाट) मामले में लड़ाई हारने के बाद अब कानूनी विकल्प़ों पर विचार कर रही है। सिर्फ वोडाफोन ही नहीं, सरकार का केयर्न एनर्जी के साथ भी ऐसा ही मामला चल रहा है। सरकार इस मामले में भी फैसला खिलाफ जाने की स्थिति में विकल्पों पर विचार कर रही है, ताकि नुकसान को कम से कम किया जा सके।
पिछले महीने एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने व्यवस्था दी थी कि भारत सरकार द्वारा पुराने कर कानूनों के जरिये दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज कंपनी वोडाफोन से 22,100 करोड़ रुपये के कर के भुगतान की मांग करना ‘उचित और समान व्यवहार की गारंटी का उल्लंघन है। भारत और नीदरलैंड के बीच द्विपक्षीय निवेश संरक्षण करार के तहत यह गारंटी दी गई है।
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वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि सरकार सिंगापुर में एक अदालत के समक्ष इस फैसले को चुनौती देने पर विचार कर रही है। इसके बारे में सरकार कानूनी राय लेकर फैसला करेगी। इस मामले में लागत काफी सीमित है। सरकार को वोडाफोन को कानूनी लागत के रूप में सिर्फ 85 करोड़ रुपये देने होंगे। हालांकि, सरकार ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी पीएलसी से संबंधित एक अलग मध्यस्थता मामले को लेकर भी विचार कर रही है।
यदि कोई अलग मध्यस्थता पैनल पुराने कानूनों के जरिये 10,247 करोड़ रुपये की मांग को गैरकानूनी ठहराता है, तो सरकार को केयर्न को डेढ़ अरब डॉलर या 11,000 करोड़ रुपये देने होंगे। यह राशि केयर्न के उन शेयरों के मूल्य के बराबर होगी, जो सरकार ने कर वसूली के लिए बेचे थे। इसमें लाभांश और जब्त कर रिफंड भी शामिल है।