कोरोना संकट को लेकर सरकार चौतरऊा घिरी हुई है। न केवल विपक्ष वरन अब तो अदालतें भी मारक टिप्पणियां कर रही है और सरकार सारी लानत-मलामत झेलते हुए एक मात्र उद्देश्य लोगों की प्राण रक्षा में जुटी हुई है। सर्वोच्च न्यायालय तक को कहना पड़ा है कि उच्च न्यायालयों को अनावश्यक टिप्पणियों से बचना चाहिए। हम धैर्य और सम्मान की उम्मीद तो कर ही सकते हैं। यह बहुत बड़ी बात है। यह सच है कि देश की आबादी और संक्रमण के हिसाब से स्वास्थ्य विभाग की तैयारियां नहीं है लेकिन सरकार कुछ नहीं कर रही है, यह कहना उचित नहीं है। सोशल मीडियाको भी सर्वोव्व न्यायालय ने राहत दी है और सूचना के प्रवाह में बाधा केप्रयासको अदालत की अवमानना मानने जैसी बात कही है। लेकिन सोशल मीडियापर सक्रियलोगोंको भी अपने विवेक कापरिचय देनाचाहिए। कोरोना की पहली लहर में लंबे लॉकडाउन के करण देश में गंभीर आर्थिक संकट का दौर जरूर था लेकिन पहली लहर इतनी घातक नहीं थी जितनी खतरनाक दूसरी लहर हो गयी है।
हर दिन संक्रमण का आंकड़ा पौने चार लाख तक पहुंच गया है और मौतों का आंकड़ा भी चार हजार प्रतिदिन के करीब है। यह तो वह संख्या है जो सरकारी आंकड़ों में दर्ज होती है, लेकिन सामान्य समझ का व्यक्ति भी यह अच्छी तरह से जानता है कि सरकारी आंकड़ों जमीनी हकीकत नहीं होती है। कोरोना के आंकड़े भी इसके अपवाद नहीं हैं। कोरोना संक्रमित और मौतों का आंकड़ा बहुत अधिक है, लेकिन गिनती में वही आते हैं जिन्होंने जांच कराया और अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गयी। बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं लेकिन आंकड़ो में इसलिए नहीं आती हैं कि लोग इसे सामान्य सर्दी-जुकाम समझकर टालते रहते हैं और प्राय: ठीक भी हो जाते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत अधिक है जिनकी बिना जांच और इलाज के ही मौत हो गयी। पिछले साल जब कोरोना ने दस्तक दी थी तब बहुत सख्त लॉकडाउन लगाया गया था और लोग अपने घरों में कैद हो गये थे।
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इससे दुर्घटना, प्रदूषण और अन्य बीमारियों से होने वाली मौतें बहुत कम हो गयी थीं। लॉकडाउन के दौरान श्मशान घाट पर भी सन्नाटा पसरा था। लेकिन इस बार स्थिति एकदम उलट है। मौतों की संख्या इतनी अधिक है कि देश का कोई भी बड़ा शहर ऐसा नहीं है जहां श्मशान एवं क्रबिस्तान पर जगह का संकट न हो। संकट के इस दौर में गरीबों पर दोहरी मार पड़ रही है। कोरोना से तो गरीब मर ही रहे हैं लेकिन रोजी-रोजगार छूट जाने के कारण स्थिति और भी विकट हो गयी है।
प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों की आमदनी कम हुई है और महंगाई के कारण खर्चे बहुत अधिक बढ़ गये हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार और केन्द्र सरकार को भी गरीबों को राहत देनी चाहिए। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गरीबों का दर्द समझते हुए उनको अगले दो महीने तक पीडीएस के तहत मिलने वाले राशन को मुफ्त में देने की घोषणा की है।
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गौरतलब है कि सरकार पीडीएस में दो रुपये किलो गेहूं और तीन रुपये किलो चावल देती है। इससे हरेक गरीब परिवार को चालीस-पचास रुपये महीने की राहत मिलेगी। देखने में यह छोटी रकम लगती है, लेकिन संकट के इस दौर में जब गरीब की जेब खाली है तो चालीस-पचास रुपये की राहत भी मायने रखती है। सरकार के इस राहतकारी कदम का स्वागत है लेकिन इसे औरविस्तारित करने की जरूरत है।
प्रदेश सरकार को संकट के इस दौर में बिजली बिल, स्कूल फीस और आवास विकास व विकास प्राधिकरणों की किश्तों में राहत देनी चाहिए। इसके साथ ही अगर गरीबों, जरूरतमंदों और निम्न मध्यम वर्ग के लिए साल-दो साल के लिए सस्ते दर पर कोई क्रेडिट स्कीम लेकर आती है तो इससे आम आदमी को कोरोना महामारी से लड़ने में बहुत मदद मिलेगी। संकट के इस दौर में जो सरकारी सेवा में सिर्फ उनकी आदमनी सुरक्षित है। निजी क्षेत्र एवं कारोबार में लगे लोगों की आजीविका पर बड़ा संकट है और सरकार को इस संकट में अपने नागरिकों के साथ खड़ा होना चाहिए।