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बीएल संतोष के सहायक के दुर्व्यवहार से पं. दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र खफा

देहरादून। भारतीय जनता पार्टी के अखिल भारतीय  संगठन  महामंत्री बीएल संतोष के सहायक अरुण भिंडे के व्यवहार से

भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक पं. दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र पं. चंद्रेशखर  भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय  काफी आहत हैं। उन्होंने बीएल संतोष को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। भवानी प्रसाद मिश्र की कविता कौन याद रखता है अंधेरे वक्त के साथियों को, सुबह होते ही चिरागों को बुझा देते हैं के जरिये उन्होंने न केवल अपने दर्द का इजहार किया है बल्कि हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान का दम भरने वाली भारतीय जनता पार्टी में  पार्टी के असली कार्यकर्ताओं और हिंदी की उपेक्षा और निरादर पर भी चिंता जताई है।

बीएल संतोष के कार्यालयीय सूत्रों ने बताया कि पं. दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र पं. चंद्रेशखर  भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय बीएल संतोष के संगठन मंत्री नियुक्त होने पर उनसे मिलकर न केवल उन्हें बधाई देना चाहते थे बल्कि  अपने हिंदी से न्याय विषयक अभियान से भी उन्हें अवगत कराना चाहते थे। इस क्रम में जब भी दिल्ली गए, 6 बार उनके आवास पर गए लेकिन चार बार तो बीएल संतोष  दिल्ली से बाहर थे । इस बीच चंद्रशेखर ने उनके सहायक अरुण भिंडे से मिलकर हिंदी से न्याय अभियान संबंधी कागजात सौंपे थे लेकिन जब उन्हें उस पत्र का कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने दो बार और उनसे मिलने का प्रयास किया गया लेकिन आवास में उनकी मौजूदगी के बाद भी भिंडे ने यह कह दिया कि  वे आवास पर नहीं हैं।

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उन्होंने बीएल संतोष को लिखे अपने पत्र में लिखा है कि  27 मई को देहरादून स्थित भाजपा के प्रांतीय कार्यालय में  आपके सहायक अरुण भिड़े ने  सार्वजनिक रूप से भाजपा के आईटी सेल के संयोजक शेखर वर्मा से मेरे पत्र पर सार्वजनिक टिप्पणी की कि  ऐसे पत्रों को तो मैं नष्ट कर कूड़ेदान में डाल देता हूं। हालांकि  मैं न इस टिप्पणी से अचंभित हूं और न दुखी हूं। देश भर से इस तरह की सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं जहां संघनिष्ठ एवं भाजपानिष्ठ जीवनव्रतियों को अपमानित किया जा रहा है।

बीएल संतोष को लिखे अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि मेरी चिंता  उन परंपराओं, मान्यताओं, संकल्पों एवं वचनों को लेकर है जो कभी विशिष्ट हुतात्माओं द्वारा मेरे परिवार के वरिष्ठजनों  को दिए गए थे। मैं केवल परिवार की परंपरा, मूल्यों, आदर्शों का र्विहन कर रहा था। आपके द्वारा भाजपा में दायित्व ग्रहण करने के बाद आपको शुभकामना देने की उत्कंठा ही मुझे आपके आवास तक लेकर गई थी।  3 नवंबर,2019 को संघ के वैकल्पिक केंद्रीय कार्यालय उदासीन आश्रम, नई दिल्ली में  सह सरकार्यवाह और संघ व सरकार के बीच समन्वयक की भूमिका निभा रहे डॉ. कृष्णगोपाल जी के सुझाव कि कभी  बीएल संतोष से भी दंड प्रणाम कर लेना  के अनुपालन क्रम में ही मैं आपके आवास पर  पहली बार 9 नवंबर को गया था लेकिन आपसे मुलाकात न हो सकी। वहां मेरी भेंट आपके सहायक अरुण भिंडे और दर्शन सिंह राठौर से हुई थी।  अपने देश व्यापी अभियान हिंदी से न्याय से जुड़े दस्तावेज और सूचनाएं आपको उपलब्ध कराने के लिए दी थी लेकिन उनका जवाब तीन माह तक तक नहीं मिला। न ही कोई टेलीफोनिक संदेश मिला।

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श्री उपाध्याय ने लिखा है कि  उसके बाद कुल 6 बार वे दिल्ली गए लेकिन आपसे मुलाकात नहीं हो पाई।  दो बार तो आपके होते हुए भी आपके सहायक ने झूठ बोल दिया। इसके बाद आपसे मिलने का कोई औचित्य नहीं था लेकिन ह्वाट्स अप पर आप मुझे पढ़ते रहे, इससे लगा कि संवाद  की संभावना अभी शेष है।  संगठन में आने के बाद उत्तराखंड में चूंकि आपका प्रथम प्रवास है। एक दवा के रिएक्शन की वजह से इन दिनों मुझे बोलने में कठिनाई है। हालांकि अभी बहुत सुधार है। अस्तु, अभिवादन प्रक्रिया के निर्वहन हेतु उत्तराखंड प्रांत के  हिंदी से न्याय अभियान के प्रमुख  धर्मंद्र डोडी ने  आपको संपूर्ण वृत्त हवाट्सअप किया । आपसे मुलाकात का समय मांगा जो नहीं मिला। फिर मैंने एक पत्र भेजा जो  आईटी सेल के संयोजक ने आपको दिया जैसा कि मुझे बताया गया। 28 मई तक कोई सूचना न मिलने से 29 मई को संबंधित व्यक्ति को जानकारी दी गई । तब आपके सहायक ने सभी लोगों के समक्ष अपमानजनक टिप्पणी कि ऐसे पत्रों को तो मैं नष्टकर कूड़ेदान में डाल देता हूं।

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श्री उपाध्याय ने अपने दादा पं दीनदयाल उपाध्याय और अपने पिता के संघ के प्रति समर्पण और मीसाबंदी के दौरान मृत्यु का तो जिक्र किया ही, यह भी कहा कि वे नाना जी देशमुख ,पं. अटल बिहारी बाजपेयी ,कुप सी सुदर्शन की गोद में खेले हैं। उन्होंने लिखा है कि जिस उत्तराखंड में पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की अवधारणा का प्रादुर्भाव हुआ था, उन दिनों वे जनसंघ के विभाग संगठन मंत्री शारदा जोशी के अल्मोड़ा आवास में प्रवास कर रहे थे। जनसंघ या भाजपा के बड़े नेता का एक वक्त  का जलपान मेरे घर पर हुआ करता था । मैं भी इसी भावभूमि के साथ आपसे मिलना चाहता था लेकिन उत्तराखंड में आपके सहायक ने इस तरह मेरा अपमान किया।

उन्होंने लिखा है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवकसंघ, भारतीय  विद्यार्थी परिषद एवे स्वदेशी जागरण मंच के पश्चात नाना जी देशमुख, शेषाद्रि जी और राजेंद्र सिंह रज्जू भैया के निर्देश पर भाषा का दायित्व संभाल रहा हूं और अपने एकल प्रत्यत्नों से उसे आखिरी मुकाम तक ले आया हूं।  उन्होंने लिखा है कि जिस भाजपा और संघ की विचारधारा को मैंने जीवन भर अपनाया और अन्य दलों की आलोचना की। वे दल तो मेरे  हिंदी से न्याय अभियान में सहयोगी मित्र की तरह खड़े रहे लेकिन संघ और भाजपा में ही मुझे  उपेक्षा और निरादर  के दौर से गुजरना पड़ रहा है। चंद्रशेखर उपाध्याय ने लिखा है कि मैं यह पत्र आपको भेज रहा हूं। यह जानते हुए कि आपका सहायक इसे आप तक पहुंचने नहीं देगा। आपका फोन उसी के पास रहता है। इसलिए फोनिक संपर्क भी संभव नहीं है लेकिन अगर पत्र मिल जाए तो उत्तर जरूर दीजिए।

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