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पं. दीन दयाल उपाध्याय के प्रपौत्र ने दी त्रिवेंद्र सिंह रावत को बहस की खुली चुनौती

Chandra Shekhar Upadhyay

सियाराम पांडेय’शांत’

एकात्म मानववाद के प्रणेता और भाजपा  के शलाका पुरुष  पं. दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र चंद्रशेखर उपाध्याय ने उत्तराखंड  के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को खुली बहस की चुनौती दी है।  श्री उपाध्याय ने कहा है कि सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने मंत्रियों और चहेते लोकसेवकों के साथ खुले में उनसे वर्षों से लंबित दो पत्रावलियों पर बहस करें। अगर उनमें से एक भी पत्रावली अविधिक पाई जाती है तो वे उत्तराखंड छोड़कर चले जाएंगे।

श्री उपाध्याय का कहना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत दो महत्वपूर्ण पत्रावलियों को  साढ़े तीन साल से अपने पास रखे  हुए हैं।  इनमें एक पत्रावली  जहां 8 साल 11 महीने से लम्बित है वहीं दूसरी 7  साल 5 महीने से ।  एक ओर वे शासन में फंसी पत्रावलियों के अविलंब निस्तारण की बात कर रहे हैं और दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों को दंडित करने की बयानबाजी कर रहे हैं, वहीं लोक महत्व की दो फाइलों पर कुंडली मारकर बैठ गए हैं।  उन्होंने जानना चाहा है कि मुख्यमंत्री इन पत्रावलियों का निस्तारण कब करेंगे या ये लाल बेठन में ही बंधी रह जाएंगी।

श्री उपाध्याय का कहना है कि यदि उक्त पत्रावलियों पर  कार्रवाई होती है और उनका समुचित  निस्तारण किया जाता है तो उत्तराखंड के कई आईएएस ,आईपीएस अधिकारी और सचिवालीय कर्मचारी जांच की जद में आ सकते हैं।

मुख्यमंत्री संभवत: चहेते अधिकारियों की लॉबी के प्रभाव में ही उन पत्रावलियों को निस्तारण हेतु नहीं भेज रहे हैं। चंद्रशेखर उपाध्याय 24  अगस्त 2004 को ही उत्तराखंड में एडीशनल  एडवोकेट जनरल नियुक्त  हुए थे। इसी तिथि पर वे दिल्ली में प्रेस वार्ता करने वाले थे लेकिन संघ के आश्वासन और सलाह के बाद उन्होंने अब उत्तराखंड में ही प्रेस मीट बुलाने का निर्णय लिया  है।

हालांकि तिथि की घोषणा वे जल्द करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि  वे अब उत्तराखंड में ‘पोल खोलो-जोर से बोलो ’अभियान की शुरुआत करेंगे। अपने छात्र जीवन में भी वे इस नाम से आंदोलन चला चुके हैं और आगरा क्षेत्र में यह आंदोलन चर्चा के केंद्र में रहा था। काफी लोकप्रिय हुआ था।

चंद्रशेखर उपाध्याय उन लोगों में हैं जो रामपुर तिराहाकांड   में मारे गए उत्तराखंड के शहीदों को न्याय दिलाने के लिए सतत संघर्ष कर रहे हैं। मुजफ्फरनगर जिला अदालत से इस मामले के खारिज होने के बाद उन्होंने पुन: निरीक्षण याचिका दायर कर  शहीदों के परिजनों की न्याय पाने की अभिलाषा को पुनर्जीवित किया है।

चंद्रशेखर उपाध्याय चाहते हैं कि राज्य सरकार इस मामले में पक्षकार बने और इसकी सलाह उन्होंने  राज्य के अधिकांश मुख्यमंत्रियों को दी लेकिन राज्य सरकार अभी तक इस मामले में पक्षकार नहीं बनी है जिससे राज्य के वकीलों को सीबीआई के वकीलों  से अपमानित होना पड़ता है।

वे इस बात का उन्हें जवाब नहीं दे पाते कि वे किस हैसियत से कोर्ट में अपना पक्ष रख रहे हैं?  चंद्रशेखर उपाध्याय इस अहम मुद्दे पर मुख्यमंत्री से वार्ता करना चाहते हैं लेकिन उत्तराखंड की जनभावना से जुड़े इस प्रकरण पर बात करने के लिए भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास समय नहीं है।

चंद्रशेखर देश में हिंदी को रोजी-रोटी से जोड़ने के अभियान के अगुवाओं में शुमार हैं। उनके कई अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय कीर्तिमान हैं। वे लगातार नैनीताल हाईकोर्ट में हिंदी भाषा में संपूर्ण वाद कार्यवाही प्रारंभ किए जाने हेतु संघर्षरत हैं, उनकी कई कोशिशें मिसाल  बनी हैं परन्तु त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास उनसे मिलने का समय न होना आश्चर्यजनक है।

चंद्रशेखर उपाध्याय को न्यायिक क्षेत्र में हिंदी की प्रतिष्ठा  और  हिंदी में एलएलएम करने के लिए किए गए कानूनी संघर्षों को वैदेशिक मान्यता तो मिली लेकिन उत्तराखंड उनकी प्रतिभा को न तो सम्मान दे पा रहा है और न ही  उनका समुचित उपयोग कर पा रहा है। । यूनाइटेड किंगडम की वेबसाइट रिकार्ड होल्डर रिपब्लिक पर स्थान बनाने वाले वे प्रथम भारतीय नागरिक हैं।

यही नहीं, हिंदी में एलएलएम करने वाले भी वे प्रथम भारतीय छात्र  हैं।  वर्ष 2009 तक यह वेबसाइट किसी भारतीय की उपलब्धियों को स्थान नहीं देती थी। पहली बार चंद्रशेखर उपाध्याय और तीन अन्य भारतीयों को  इस प्रतिष्ठित वेबसाइट पर स्थान मिला था।   इसके अलावा द  सर्वे ऑफ़ इंडिया की वेबसाइट पर उन्हें आठवें क्रम और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को 14 वें क्रम पर जगह मिली है। इस वेबसाइट पर  57 भारतीयों को  शामिल किया गया है जिसमें पहले क्रम पर कविवर चंदवरदाई को स्थान मिला है।  इसके अतिरिक्त इंडिया बुक आॅफ द  रिकार्ड्स  में भी चंद्रशेखर उपाध्याय को जगह मिली है।

चंद्रशेखर उपाध्याय  उस परिवार से संबंध रखते हैं जिसके संस्कारों, त्याग और बलिदान की गाथा  पूरी भाजपा  गाती है।  जज के रूप में चंद्रशेखर उपाध्याय का काम किसी से छिपा नहीं है। उन्होंने एक दिन में सैकड़ों मामले  निर्णीत किए औरसबके फैसले हिंदी में सुनाए। वे लंबे समय से इस बात के लिए प्रयासरत हैं कि बड़ी अदालतों में भी बहस और फैसले हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में हों। यदि ऐसा न हो सके तो निर्णयों की हिंदी या अन्य भाषाओं में अनूदित प्रति वादकारियों को उपलब्ध करायी जाएं  जिससे कि वे यह समझ सकें कि उनके मामले में हुआ क्या है?

उत्तराखंड राज्य के संवेदनशील मुददों पर भी समय न निकालने वाले मुख्यमंत्री हिंदी  के लिए न्याय जैसे अभियान को भी कमजोर कर रहे हैं। उत्तराखंड के कुछ साथियों की मानें तो तकरीबन नौ साल बाद भी एक हिंदीवीर का वनवास खत्म नहीं हुआ है। चंद्रशेखर जैसे लोग गुपचुप गणतंत्र रच रहे हैं लेकिन राष्ट्रवाद  के समर्थक अथवा विरोध करने वाले लोग सम्मानों और पुरस्कारों का उत्सव मनाने में अस्त-व्यस्त- मस्त व पस्त   हैं?

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