नई दिल्ली। सरकार ने दवा तैयार करने में काम आने वाली रासायनिक सामग्री (बल्क ड्रग या एपीआइ) और चिकित्सा उपकरणों की घरेलू मैन्युुफैक्चरिंग को बढ़ावा देने वाली चार योजनाओं के दिशानिर्देश जारी कर दिए। इसके तहत देश में बल्क ड्रग उत्पादन और मेडिकल डिवाइस पार्क स्थापित किए जाने हैं। केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण के अनुसार फार्मा सेक्टर में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इन योजनाओं की परिकल्पना की गई है।
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फार्मा विभाग के इन प्रस्तावों पर केंद्रीय कैबिनेट ने इस वर्ष मार्च में मंजूरी दी थी। गौड़ा ने कहा कि इनका मकसद भारत को 53 महत्वपूर्ण एपीआइ या मुख्य औषधिक सामग्री (केएसएम) के उत्पादन में और चिकित्सा उपकरणों की मैन्युुफैक्चरिंग में आत्मनिर्भर बनाना है, जिनके लिए अभी देश मुख्य रूप से आयात पर निर्भर है। सरकार दवा क्षेत्र में आयात पर देश की निर्भरता कम करना चाहती है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पार्क के लिए जगह का चयन विनियामक मंजूरियों, बुनियादी ढांचे की स्थिति, बेहतर संपर्क, सस्ती जमीन, प्रतिस्पर्धी उपयोगिता शुल्क और मजबूत आरएंडडी (शोध एवं अनुसंधान) इकोसिस्टम पर आधारित होगा।
उन्होंने कहा कि इससे नई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स स्थापित करने के लिए समय और निवेश लागत में कमी आएगी। पार्क की स्थापना को केंद्र और राज्य सरकारों का पूरा समर्थन मिलेगा। यहां कंपनियों को प्लग एंड प्ले की सुविधा मिलेगी। इसका मतलब यह है कि पार्क की स्थापना और उनसे संबंधित सभी मंजूरियां मिल चुकी होंगी व इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास किया जा चुका होगा। कंपनियों को वहां जाकर सीधे उत्पादन शुरू करने लायक इन्फ्रास्ट्रक्चर मिल जाएगा।
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देश का फार्मा सेक्टर इस वक्त करीब 4,000 करोड़ डॉलर यानी तीन लाख करोड़ रुपये मूल्य के आसपास है। इसे अगर सही मदद मिले तो वर्ष 2024 तक इसके 10,000 करोड़ डॉलर यानी साढ़े सात लाख करोड़ रुपये के करीब पहुंच जाने की उम्मीद है। गौड़ा का कहना था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2025 तक देश की इकोनॉमी को पांच लाख करोड़ डॉलर यानी मौजूदा भाव पर करीब 375 लाख करोड़ रुपये मूल्य का आकार देने का लक्ष्य रखा है। इसमें फार्मा सेक्टर की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।