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गुप्त नवरात्रि: तीसरे दिन करें त्रिपुर सुंदरी साधना, जानिए पूजा विधि

Gupt Navratri

Gupt Navratri

हिंदू धर्म में सभी त्योहारों और व्रतों का अपना महत्व है, लेकिन इनमें नवरात्रि को काफी अहमियत दी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, साल में चार बार नवरात्रि आती है। इनमें आश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को शारदीय और वसंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा आषाढ़ और माघ मास की नवरात्रि गुप्त (Gupt Navratri) रहती है। इनके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि भी कहते हैं। हालांकि, गुप्त नवरात्रि का भी अपना खास महत्व है।

इसमें मां दुर्गा के दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्री के दौरान भक्त त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, मां बंगलामुखी, मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, माता भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, माता मातंगी और कमला देवी की पूजा की जाती है। इस पूजा से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 11 जुलाई से हो रही है।

गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) पूजा विधि

सबसे पहले व्रत रखने वाला शख्स पूजा का संकल्प लेता है। इसकी शुरुआत होती है कलश स्थापना से। कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा की श्री रूप लाल रंग के पाटे पर सजाते हैं। प्रतिदिन सुबह-सुबह मां दुर्गा की पूजा करते हैं। अष्टमी या नवमी को हम नौ कन्याओं को खाना खिलाकर नवरात्रि के व्रत का समापन करते हैं।

गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) दस महाविद्या पूजा मंत्र

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।

भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।

बगला सिद्ध विद्या च मातंगी कमलात्मिका

एता दशमहाविद्याः सिद्धविद्या प्रकीर्तिताः॥

  1. काली

मंत्र “ॐ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहाः”

  1. तारा

देवी काली ही, नील वर्ण धारण करने के कारण ‘तारा’ नाम से जानी जाती हैं । दोनों शिव रूपी शव पर प्रत्यालीढ़ मुद्रा धारण किये हुए आरूढ़ हैं, अंतर केवल देवी काली शव रूपी शिव पर आरूढ़ हैं तथा देवी तारा जलती हुई चिता पर आरूढ़ हैं। दोनो। दोनों का निवास स्थान श्मशान भूमि हैं| देवी तारा ने, भगवान शिव को बालक रूप में परिवर्तित कर, अपना स्तन दुग्ध पान कराया था। समुद्र मंथन के समय कालकूट विष का पान करने के परिणाम स्वरूप, भगवान शिव के शरीर में जलन होने लगी तथा वे तड़पने लगे, देवी ने उन के शारीरिक कष्ट को शांत करने हेतु अपने अमृतमय स्तन दुग्ध पान कराया। देवी काली के सामान ही देवी तारा का सम्बन्ध निम्न तत्वों से हैं।

तारास्तोत्रम्

मातर्नीलसरस्वति प्रणमतां सौभाग्यसम्पत्प्रदे

प्रत्यालीढपदस्थिते शवहृदि स्मेराननाम्भोरुहे ।

फुल्लेन्दीवरलोचने त्रिनयने कर्त्रीकपालोत्पले खङ्गं

चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥१॥

गुप्त नवरात्रि तीसरे दिन त्रिपुर सुंदरी

ललिता त्रिपुर सुंदरी बीज मंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नमः।

बाला त्रिपुर सुंदरी बीज मंत्र

ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:

माँ त्रिपुरी सुन्दरी ध्यान मंत्र:

1.बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों। नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम्।।

हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती। श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत्।।

2.ऊं त्रिपुर सुंदरी पार्वती देवी मम गृहे आगच्छ आवहयामि स्थापयामि।

(षोडशी – त्रिपुर सुन्दरी साबर मंत्रं)

ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला |

योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता |

त्रिपुर सुन्दरी गायत्री मंत्र

बालाशक्तयै च विद्महे त्र्यक्षर्यै च धीमहि तन्नः शक्तिः प्रचोदयात् |

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