आगरा। भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में गांव की महिलाएं अपने खर्च के लिए पुरुषों पर निर्भर रहती हैं। लेकिन, एक गांव ऐसा भी है जहां महिलाएं आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। एक साल के अंदर स्वयं सहायता समूहों से 95 हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़कर न केवल स्वरोजगार कर रही हैं, बल्कि वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बन चुकी हैं। कई समूहों का कारोबार तो बाहर भी अपनी धाक जमा चुका है। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं स्वरोजगार करके आत्मनिर्भर बन रही हैं।
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बरौली ब्लॉक के गांव कोलखा की कमलेश कुमारी ने एक साल पहले 12 महिलाओं को इकट्ठा करके समूह बनाया। समूह ने जूता निर्माण का काम शुरू किया। कोरोना काल में भी इनके काम पर असर नहीं पड़ा। अब हर माह समूह की आमदनी 50 हजार से ऊपर है। जूते का कारोबार आगरा से बाहर भी फैलने लगा है। केस दो
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बगदा गांव की अवधेश यादव ने भी 10 महीने पहले गांव की आठ महिलाओं का समूह बनाया। समूह को बिजली के बिल काटने और बाल पोषाहार उठाने का काम मिला। समूह की महिलाओं को एक बिल वसूली पर 20 रुपये मिलते हैं। 2000 रुपये से ऊपर की वसूली पर एक प्रतिशत कमीशन है। अब यह महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं।
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केंद्र सरकार की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) योजना वर्ष 2014 में आई थी। तब महिलाओं में समूह गठन के प्रति जागरूकता नहीं थी। प्रारंभ में छह ब्लॉकों में कुछ समूह ही बन पाए। मगर, बीते एक साल समूह तेजी से बने। वर्ष 2019-20 में अकोला, बाह, एत्मादपुर, जगनेर, जैतपुर कला, खैरागढ़, पिनाहट, सैया और शमशाबाद ब्लॉकों में आठ हजार से ज्यादा समूह बनाकर 95 हजार महिलाएं स्वरोजगार से जुड़ चुकी हैं।