हर वर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को पवन पुत्र भगवान श्री हनुमान का जन्मोत्सव पर्व मनाया जाता है। हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था। उनके पिता वानर राज राजा केसरी थे जो सुमेरू पर्वत के राजा थे। उनकी माता का नाम अंजनी था। हनुमान को पवन पुत्र और बजरंगबली भी कहा जाता है। श्री हनुमान जी कलयुग में सबके सहायक, रक्षक माने जाते हैं।
हनुमान जन्म कथा
एक पौराणिक कथा के मुताबिक, समुद्रमंथन के बाद भगवान शंकर के निवेदन पर असुरों से अमृत की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर देवताओं की सहायता कर अमृत का पान देवताओं कराया। लेकिन भगवान विष्णु का दिव्य मोहिनी रूप देखकर महादेव कामातुर हो गए, जिससे उनका वीर्यपात हुआ।
भगवान शिवजी के आदेश पर वायुदेव ने इस वीर्य को वानर राज राजा केसरी की पत्नी देवी अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया। इसके बाद अंजनी देवी के गर्भ से महादेव ने 11वें रुद्र अवतार ने हनुमान जी के रूप में जन्म लिया। हनुमान जी ने अपना पूरा जीवन अपने आराध्य देव प्रभु श्रीराम की सेवा में समर्पित कर दिया। समस्त देवताओं ने हनुमान जी को बाल्यकाल में ही अनेकों प्रकार की शक्तियां देकर उन्हें शक्तिशाली बना दिया। वहीं श्री राम और माता सीता के आशीर्वाद से बजरंगबली अजर अमर हैं।
भगवान हनुमान की खासियत
पवन पुत्र हनुमान जी की पूजा एक दिव्य ईश्वर के रूप में की जाती है। हनुमान जयंती का महत्व ब्रह्मचारियों के लिए बहुत अधिक है। वह जन्म से ही परम तेजस्वी, शक्तिशाली, गुणवान और सेवा भावी थे। हनुमान जी अपने भक्तों के बीच कई नामों से जाने जाते हैं जैसे- बजरंगबली, पवनसुत, पवनकुमार, महावीर, बालीबिमा, मरुत्सुता, अंजनीसुत, संकट मोचन, अंजनेय, मारुति, रुद्र इत्यादि। महावीर हनुमान ने अपना जीवन केवल अपने आराध्य भगवान श्री राम और माता सीता की सेवा सहायता के लिए समर्पित कर दिया है।
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।
अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।
पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।
बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।
जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।