जब कोई महिला अपने पार्टनर के साथ सहमति से संबंध बनाती है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसने अपने रिप्रोडक्टिव राइट्स छोड़ दिए हैं। ये टिप्पणी दिल्ली की द्वारका कोर्ट ने इसी हफ्ते रेप के आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए दी है। इसी आधार पर कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज कर दी। पीड़ित महिला का आरोप है कि लिव-इन में रहने के दौरान उसके पार्टनर ने उसे तीन बार जबरन गर्भपात के लिए मजबूर किया।
पूरा मामला क्या है? कोर्ट ने इस मामले में क्या कहा है? रिप्रोडक्टिव राइट्स क्या होते हैं? आपको इन राइट्स के तहत क्या-क्या अधिकार दिए गए हैं? इसको लेकर भारत में क्या कानून है? और कोर्ट ने कब-कब इस संबंध में फैसले दिए हैं? इस मामले को समझने के लिए हमने वकील नितिका खेतान से बातचीत की, आइए उनसे ही समझते हैं…
मामला दिल्ली के एक कपल का है। दोनों लिव इन में रह रहे थे। रिश्ता टूटने के बाद महिला ने अपने पार्टनर पर रेप और जबरन अबॉर्शन कराने का केस कर दिया। मामले में आरोपी गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उसने दिल्ली के द्वारका कोर्ट में जमानत की अर्जी लगाई।
आरोपी ने कहा कि उसने महिला के साथ सहमति से संबंध बनाए थे, लेकिन जब दोनों के रिश्तों में खटास आई तो महिला ने रेप का झूठा आरोप लगा दिया। इसलिए उसे जमानत मिलनी चाहिए। कोर्ट ने जबरन अबॉर्शन करने को महिला के रिप्रोडक्टिव राइट्स का हनन माना। इसी आधार पर आरोपी की याचिका खारिज कर दी गई।
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कोर्ट ने कहा कि अगर किसी महिला ने संबंध बनाने के लिए अपनी सहमति दी है, इसका यह मतलब नहीं है कि महिला ने इस संबंध के बाद बच्चे को पैदा नहीं करने की भी सहमति दी है। यानी महिला का संबंध बनाने का मतलब यह नहीं है कि उसने अपने रिप्रोडक्टिव राइट्स भी छोड़ दिए हैं।
यौन संबंधी अधिकार और प्रजनन संबंधी अधिकार दो पूरी तरह के अलग मामले हैं। एक चीज में सहमति देने का मतलब ये नहीं है कि दूसरी चीज में भी सहमति दी है। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि कई बार प्रेग्नेंसी और अबॉर्शन से रिप्रोडक्टिव राइट्स का हनन करना शारीरिक संबंधों में सहमति के तत्व को छीन लेता है।
आसान भाषा में समझें तो रिप्रोडक्टिव राइट्स का मतलब किसी व्यक्ति की रिप्रोडक्शन हेल्थ और इसके फैसले से जुड़ा है। यानी कोई कब प्रेग्नेंट होना चाहता है, अबॉर्शन करना चाहता है, कॉन्ट्रासेप्टिव का इस्तेमाल करना चाहता है, और फैमिली प्लानिंग करना चाहता है। इसमें प्रेग्नेंसी के दौरान जरूरी पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएं, प्रेग्नेंसी से पहले महिला-पुरुष दोनों की सहमति जैसी कई दूसरी बातें भी शामिल हैं।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के जरिए विशेष परिस्थितियों में अबॉर्शन की छूट दी जाती है। इसके मुताबिक, अगर किसी महिला को प्रेग्नेंसी की वजह से गंभीर शारीरिक या मानसिक समस्या हो सकती है तो अबॉर्शन की छूट दी जाती है। हालांकि, ये डॉक्टर की सलाह पर ही किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में अबॉर्शन करवाना अपराध नहीं माना जाएगा।