नई दिल्ली। राजस्थान उच्च न्यायालय में सोमवार को भाजपा के विधायक मदन दिलावर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई होगी। इस याचिका में पिछले साल कांग्रेस पार्टी के साथ राज्य में सभी छह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायकों के विलय को चुनौती दी गई है। इसके अलावा आज उच्चतम न्यायालय में विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की याचिका पर भी सुनवाई होनी है। हालांकि माना जा रहा है कि कानूनी दांवपेच में नाकामी के बाद वे अपनी याचिका वापस ले सकते हैं। उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय के 21 जुलाई के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।
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भाजपा विधायक ने शुक्रवार को राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसमें कांग्रेस की ताकत बढ़ाने वाले विलय की अनुमति देने के स्पीकर के फैसले को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने संविधान की 10वीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत इन छह विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के लिए इस साल मार्च में अपनी शिकायत पर स्पीकर की निष्क्रियता पर सवाल उठाए हैं। याचिका के अनुसार, विधानसभा अध्यक्ष जोशी ने बसपा के छह विधायकों- संदीप यादव, (तिजारा), वाजिब अली (नगर), दीपचंद खेरिया (किशनगढ़बास), लखनमीना (करौली) और राजेंद्र (उदयपुरवाटी) को कांग्रेस में विलय को मंजूरी दी थी। भाजपा विधायक ने स्पीकर के आदेश की वैधता को चुनौती दी है। उन्होंने 16 मार्च को स्पीकर के समक्ष 10वीं अनुसूची के तहत याचिका दायर करते हुए इन छह विधायकों को अयोग्य ठहराने का अनुरोध किया था।
सचिन पायलट सहित कांग्रेस के बागी विधायकों की याचिका पर उच्च न्यायलय के फैसले के खिलाफ स्पीकर ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इस याचिका पर सुबह 11 बजे सुनवाई होनी है। जोशी ने याचिका में कहा था कि उच्च न्यायालय का आदेश उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।
हालांकि विश्वस्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि विधानसभा स्पीकर की लीगल टीम ने रणनीति में बदलाव करते हुए सर्वोच्च अदालत में दायर याचिका को और आगे न बढ़ाने का फैसला किया है। बताया जा रहा है कि 24 जुलाई के राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश और 23 जुलाई को शीर्ष अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों के बाद जोशी उच्चतम न्यायालय से याचिका वापस ले सकते हैं।
बसपा ने जारी की व्हिप
रविवार को बसपा ने अपने छह विधायकों को व्हिप जारी कर सदन की किसी भी कार्यवाही में गहलोत सरकार के खिलाफ मतदान करने को कहा है। बसपा महासचिव का कहना है कि सभी छह विधायक राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती द्वारा जारी बसपा के चुनाव चिन्ह पर चुने गए थे और कांग्रेस सरकार के खिलाफ वोट देने के लिए पार्टी के व्हिप द्वारा बाध्य हैं। विधायकों को अलग-अलग नोटिस जारी किया गया है। उनसे कहा गया है कि चूंकि बसपा एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी है, इसलिए विधायकों का राज्य स्तर पर दसवीं अनुसूची के पैरा (4) के तहत कोई विलय नहीं हो सकता है।
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पत्र में विधायकों को दसवीं अनुसूची का मतलब भी समझाया है। लिखा है, किसी पार्टी का विधानसभा सदस्य तब अयोग्य हो जाएगा, अगर वह स्वैच्छिक तौर पर अपनी मूल पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है, या पार्टी के निर्देश के बावजूद विधायक सदन में वोट से अनुपस्थित रहता है। ऐसे में यह साफ है कि आप सभी विधानसभा के सदस्य बने हुए हैं और आपकी सदस्यता बसपा से जुड़ी है।