आज 14 अगस्त 2020 को यूजी और पीजी की लास्ट ईयर/लास्ट सेमेस्टर की परीक्षाओं को 30 सितंबर तक संपन्न करवाने के मामले में सुनवाई होने जा रही है। पिछले दिनों यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान यह दावा किया है कि दिल्ली और महाराष्ट्र गवर्नमेंट का यूजी और पीजी की लास्ट ईयर / लास्ट सेमेस्टर की परीक्षाओं को रद्द करने का फैसला देश के उच्च शिक्षा के स्तर पर असर डाल सकता है।
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सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी के 6 जुलाई 2020 को जारी किए गए उन दिशा-निर्देशों के खिलाफ दायर की गयी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। जिसमें देश के सभी विश्वविद्यालयों को यूजी और पीजी की लास्ट ईयर / लास्ट सेमेस्टर की परीक्षाएं हर-हाल में 30 सितम्बर 2020 तक करवाने का निर्देश दिया गया था। जबकि दिल्ली और महाराष्ट्र की गवर्नमेंट ने यूजीसी के इन निर्देशों का पालन करने में असमर्थता जताते हुए इन परीक्षाओं को ही रद्द कर दिया है।
दरअसल सुप्रीमकोर्ट में 10 अगस्त 2020 की सुनवाई के समय यूजीसी ने दिल्ली और महाराष्ट्र के उस फैसले पर सवाल उठाया था। जिसके तहत इन दोनों सरकारों ने परीक्षा को ही रद्द कर दिया था। कोर्ट में यूजीसी का कहना था कि उनका यह फैसला यूजीसी के नियमों के खिलाफ है।
यूजीसी ने कोर्ट में यह भी कहा कि राज्यों को यूजीसी के तहत आयोजित होने वाली परीक्षाओं को रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जब यह जानना चाहा कि क्या राज्य आपदा प्रबंधन कानून के तहत यूजीसी के नोटिफिकेशन और दिशा-निर्देश को रद्द किया जा सकता है ? कोर्ट के पूछे गए इस सवाल का जबाब देने के लिए यूजीसी की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समय मांग लिया। जिस पर कोर्ट ने उनको समय देते हुए मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त 2020 को तय कर दिया था।
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सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि डिग्री प्रदान करने के लिए नियम बनाने का अधिकार सिर्फ यूजीसी को है। इसलिए राज्य यूजीसी के फैसले / नियम को नहीं बदल सकते हैं। और अगर राज्य इस मामले में यूजीसी के नियम के खिलाफ जाकर कार्य करेंगे तो संभव है कि उनकी डिग्री को ही अमान्य कर दिया जाएगा।