नई दिल्ली। देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर की परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 10 अगस्त के लिए टल गई है। कोर्ट ने महाराष्ट्र में स्टेट डिज़ास्टर मैनेजमेंट कमेटी की तरफ से लिए गए फैसले की कॉपी रिकॉर्ड पर रखने को कहा है।
कोर्ट ने गृह मंत्रालय को कोरोना के कारण परीक्षाओं को रद्द करने पर अपना पक्ष रखने को कहा है। केंद्र ने कहा कि वह सोमवार तक अपना रुख तय करेगा। यूजीसी ने कहा है कि किसी को भी इस धारणा के अधीन नहीं होना चाहिए कि सितंबर के अंत तक होने वाली अंतिम परीक्षा को रोक दिया जाएगा।
यूजीसी ने ये भी कहा कि छात्रों को अपनी परीक्षा की तैयारी जारी रखनी चाहिए। अलख आलोक श्रीवास्तव मामले में 31 याचिकाकर्ता छात्राओं के वकील हैं। उन्होंने कोर्ट में कहा कि आज 25,000 से अधिक कोविड 19 मामले दर्ज किए गए हैं। ऐसे माहौल में परीक्षाएं कैसे आयोजित की जा सकती हैं।
याचिकाकर्ताओं के लिए एएम सिंघवी ने सलाह दी कि कुछ विश्वविद्यालयों में इन ऑनलाइन परीक्षाओं का संचालन करने के लिए बुनियादी आईटी सुविधाओं की कमी है। परीक्षा के ऑनलाइन मोड को समान रूप से अपनाना संभव नहीं है।
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कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि इस मामले में कृपया गृहमंत्रालय का रुख स्पष्ट करें। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सोमवार तक नवीनतम रिपोर्ट सामने रखी जाएगी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके लिए हमने कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने गुरुवार को यूनिवर्सिटी के फाइनल एग्जाम पर सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था। यूजीसी ने इसमें कहा कि फ़ाइनल ईयर की परीक्षाएं 30 सितंबर तक आयोजित कराने का मक़सद छात्रों का भविष्य संभालना है ताकि छात्रों की अगले साल की पढ़ाई में देरी न आए। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई होगी।
पिछली सुनवाई में देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी को जवाब देने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कोरोना को लेकर छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनजर परीक्षा आयोजित न करने की दरख्वास्त की गई है।
याचिकाओं में 6 जुलाई को जारी किए गए यूजीसी दिशा निर्देशों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निर्देश जारी करने की मांग की गई है। यहां 6 जुलाई को यूजीसी के दिशा निर्देशों में सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश दिया गया था।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा 6 जुलाई, 2020 की अधिसूचना जारी करते हुए परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी थी। कोर्ट ने विश्वविद्यालयों को यूजीसी के दिशा निर्देशों के अनुसार अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया था।
बता दें कि याचिकाकर्ताओं में कोविड पॉजिटिव का एक छात्र भी शामिल है, उसने कहा है कि ऐसे कई अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जो या तो खुद या उनके परिवार के सदस्य कोविड पॉजिटिव हैं। ऐसे छात्रों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना, अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है।
देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के करीब 31 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर यूजीसी द्वारा 6 जुलाई को जारी की गई संशोधित गाइडलाइंस को रद्द करने की मांग की है।
यूजीसी ने अपनी संशोधित गाइडलाइंस में देश के सभी विश्वविद्यालयों से कहा है कि वे फाइनल ईयर की परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले करा लें। छात्रों ने अपनी याचिका में मांग की है कि फाइनल ईयर की परीक्षाएं रद्द होनी चाहिए और छात्रों का रिजल्ट उनके पूर्व के प्रदर्शन के आधार पर जारी किया जाना चाहिए।
बता दें कि इससे पहले 23 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने यूजीसी को स्पष्ट करने के लिए कहा था कि क्या विश्वविद्यालयों द्वारा फाइनल ईयर की परीक्षाओं को मल्टीपल च्वॉइस क्वेश्चन (MCQ), ओपन च्वॉइस, असाइमेंट्स एंड प्रेजेंटेशन के आधार पर आयोजित किया जा सकता है।
बता दें कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने विश्वविद्यालयों की फाइनल ईयर/सेमेस्टर की परीक्षाओं और शैक्षणिक कैलेंडर को लेकर छह जुलाई को संशोधित गाइडलाइन जारी की थी। यूजीसी की नई गाइडलाइन के अनुसार इंटरमीडिएट सेमेस्टर के छात्रों का मूल्यांकन आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर करने की बात कही गई थी।
इसके अलावा नये दिशा निर्देश के मुताबिक टर्मिनल सेमेस्टर के छात्रों का मूल्यांकन जो जुलाई के महीने में परीक्षाओं के माध्यम से किया जाना था, अब उनकी परीक्षाएं सितंबर 2020 के अंत तक आयोजित की जाएंगी।
बता दें, यूजीसी ने पहले निर्णय लिया था कि विश्वविद्यालयों की फाइनल ईयर की परीक्षाओं का आयोजन होना चाहिए। वहीं फर्स्ट ईयर के छात्रों को सेकंड ईयर में प्रमोट कर दिया जाएगा। उन्हें नंबर इंटरनल असेसमेंट के आधार पर दिए जाएंगे। बता दें, कोरोना वायरस के केस एक जुलाई तक कम होने की उम्मीद थी, जो नहीं हुए हैं। छात्रों और अभिभावकों के अलावा कई राज्य सरकारें भी इसका विरोध कर रही हैं।