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यहां जातियों पर दांव लगाती हैं पार्टियां, जिले का विकास कभी नहीं रहा चुनावी मुद्दा

श्रावस्ती। विधान सभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू है ऐसे में छोटे दल बड़े दलों के जातीय गणित पर भारी पड़ सकते हैं। भाजपा जहां ऊंची जातियों पर दांव लगाती रही है। वहीं पर सपा अल्पसंख्यक तथा पिछड़े जाति पर ज्यादा विश्वास करती आ रही है । जिले की दोनों ही सीटों पर सपा, भाजपा व कांग्रेस की तरफ से अपने चुनावी पत्ते अभी तक नहीं खोले गए हैं।

इसके चलते ही चुनाव में किस पाटी से कौन प्रत्याशी मैदान में होगा, इसे लेकर समर्थकों के साथ ही मतदाताओं में भी उहापोह की स्थिति कायम है। बड़े दलों में अभी तक सिर्फ बसपा की तरफ से ही दोनों ही सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया गया है। बसपा ने भिनगा विधानसभा से दद्दन खा और श्रावस्ती विधानसभा से नीतू मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया है वहीं पर एनडीए के प्रमुख घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (रा) ने भिनगा विधानसभा से पार्टी के किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष पंडित मनोज पाठक को अपना उम्मीदवार बनाया है जो बड़े दलों के लिए किरकिरी साबित हो रहे हैं ।

भिनगा विधानसभा सीट की बात करे तो यहाँ सबसे अधिक वोटर अल्पसंख्यक समुदाय के है, इनमें भी पठान विरादरी सर्वाधिक है। दूसरे नम्बर पर कबाडिया (राईनी) व अन्य जातियां हैं यदि जनसंख्या के आधार पर बात करें तो भिनगा विधानसभा में अल्पसंख्यकों की संख्या 23.21 प्रतिशत है, इसके बाद ब्राह्मण 12.77 प्रतिशत, यादव 11 . 94 फीसदी,कुर्मी 9.68 फीसदी, अनुसूचित जाति चमार 5.06 फीसदी, पासी 4.57 फीसदी, और कोरी 2.14 फीसदी हैं ।

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भिनगा सीट से कांग्रेस और बसपा द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने तथा भाजपा द्वारा ठाकुर प्रत्याशी और सपा द्वारा कुर्मी प्रत्याशी उतारे जाने की प्रबल संभावना के समीकरण को अब उल्टा किया जा सकता है । साथ ही भिनगा विधानसभा सीट पर पासवान और बाल्मीकि समाज की अच्छी- खासी वोटर संख्या किसी भी उम्मीदवार पर भारी पड़ सकता है । लोजपा उम्मीदवार मनोज पाठक स्पष्ट कहते हैं कि भिनगा विधानसभा सीट पर वह अकेले ब्राह्मण प्रत्याशी हैं साथ ही पार्टी संरक्षक पासवान एवं जिला अध्यक्ष जटाशंकर बाल्मीकि के बिरादरी के इस सीट पर अच्छी- खासी वोटर होने साथ ही वह अपने पार्टी के संरक्षक स्वर्गीय राम विलास पासवान द्वारा सवर्णों के लिए आरक्षण दिलाने का कार्य भी उनको फायदा देगा और वह चुनाव जीतने की अच्छी स्थिति में हैं। मालूम हो कि भिनगा विधानसभा से बसपा ने सपा से बसपा में शामिल हुए दद्दन खा ( पठान) को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है, जबकि कांग्रेश ने इस विधानसभा से दोबारा निर्दल के रूप में विधायक रह चुके खुर्शीद आलम के भाई इकबाल अहमद को अपना प्रत्याशी बनाने की संभावना है।

उल्लेखनीय है कि चुनाव में विकास जिले का कभी भी मुद्दा नहीं रहा। इसीलिए किसी भी प्रत्याशी ने अपना स्थानीय स्तर पर संकल्प पत्र यहां जारी ही नहीं किया। यहां चुनाव का 1962 से लेकर 2012 तक केवल एक ही मुद्दा था वह था हिंदू बनाम मुस्लिम। इसीलिए यहां सभी दलों को प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। जबकि राजनीति का आधार ही विकास है। भले ही राजनीतिक दल उसे पूरा न करें।

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इसके बावजूद चुनाव के दौरान स्थानीय स्तर पर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी अपना-अपना संकल्प पत्र जारी करते हैं। वह अपने होल्डिंग में इस बात का अब तक उल्लेख करते आए हैं कि वह जब जीतेंगे तो क्या करेंगे। लेकिन श्रावस्ती जिले की दोनों विधानसभा सीटों में यह नियम व परंपरा कभी भी लागू नहीं हुई। यहां चुनाव का मुद्दा कभी भी विकास नहीं बन पाया। जबकि देखा जाए तो 1997 में गठित इस जिले में समस्या ही समस्या है। यहां आवागमन के लिए निजी बसों की ओर देखना पड़ा रहा है। एक लंबा समय बीत जाने के बाद इस जनपद को बस डिपो नहीं मिल पाया।

उत्तर प्रदेश का संभवत: यह इकलौता जिला है जिसका एक कोना भी रेलवे लाइन को नहीं छूता। प्रतिवर्ष राप्ती नदी में आने वाली बाढ़ लाखों लोगों को विस्थापित कर देती है। शिक्षा के नाम पर परिषदीय व माध्यमिक स्कूल हैं। जिले में 13 लाख आबादी पर मात्र एक राजकीय डिग्री कॉलेज है। चिकित्सा के क्षेत्र में भी संयुक्त जिला चिकित्सालय केवल रेफरल इकाई के रूप में कार्यरत है। यह वह मुद्दे हैं जिनका सामना प्रतिदिन सभी को करना होता है। इसके अलावा सिंचाई के संसाधन न होना, भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र के गांवों की अपनी कई समस्याएं हैं। जिले की दो तहसील जिला मुख्यालय से जुड़ी नहीं हैं। जिसके चलते सुबह घर से निकले लोग देर रात वापस पहुंच पाते हैं। जबकि दूरी 30-35 किलोमीटर ही है। यह सब समस्याएं ऐसी हैं जिनसे जीवन चलाना भी कठिन हो जाता है। इसके बावजूद यह कभी भी स्थानीय स्तर पर विधानसभा चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाया। लेकिन चुनाव हर पांच वर्ष में होता है और उसका आधार केवल धार्मिक समीकरण ही होता है। 1962 से 2012 तक धर्म ही रहा चुनावी मुद्दा ।

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श्रावस्ती 1952 में बहराइच का ही अंग हुआ करता था। उस समय इकौना पूर्वी व पश्चिमी के नाम से 1952 में पहला चुनाव हुआ। जिसे भिनगा व इकौना विधानसभा का नाम दिया गया। 1952 में कांग्रेस के आर के राव भिनगा विधानसभा में व बाबू शिवशरण लाल इकौना विधानसभा क्षेत्र से जीतकर सदन पहुंचे। यह जोड़ी 1957 में भी कायम रही। यह वह दौर था जब वोट का प्रतिशत 12 से 13 प्रतिशत के बीच होता था। यह वह लोग थे जो जिले की राजनीति का चेहरा हुआ करते थे। इनका योगदान स्वतंत्रता आंदोलन में भी था। 1962 आते-आते स्थिति बदली। देश में कांग्रेस के खिलाफ स्वतंत्र पार्टी ने मोर्चा खोल दिया। उस समय मुन्नू सिंह व इकौना से मंगल प्रसाद चुनाव जीते। यहीं से राष्ट्रीय मुद्दों व उसका प्रभाव जिले में समाप्त हो गया।

यहीं से धार्मिक समीकरण पर चुनाव हुआ। दोनों विधानसभाओं में 2012 तक हिंदू बनाम मुस्लिम का मुद्दा छाया रहा। इस मुद्दे का लाभ सपा, बसपा, भाजपा व जनसंघ सभी को हुआ। हर चुनाव में जीतने वाला यदि हिंदू होता था तो उससे हारने वाला मुस्लिम, वहीं तीन बार भिनगा विधानसभा में तो एक बार इकौना जिसे आज श्रावस्ती विधानसभा कहते हैं वहां मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। दोनों चुनाव में इन लोगों से हारने वाला हिंदू प्रत्याशी ही था। जीतने वाला दल बदलता रहा लेकिन समीकरण वहीं का वहीं कायम रहा।

वहीं पर कुर्मी वोटर जिले में कभी भाजपा के एकाधिकार वाले वोटरों की श्रेणी में आते थे। लेकिन 2012 के चुनाव से लगातार कुर्मी वोटरों का साथ भाजपा से छूटता जा रहा है। इस परिवर्तन का कारण जिले की राजनीति में इस वर्ग के वोटरों व उनके नेताओं को तरजीह न देना बताया जा रहा है। वहीं पार्टी इसका मंथन कर रही है कि एक बड़े समुदाय वाले वोटरों को फिर से कैसे पार्टी की डोर में बांधा जाये।

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