लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट (High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने कृषि कार्य हेतु लिये गये कर्ज को योगी सरकार की कृषि माफी योजना 2017 के तहत माफ करने के लिए दी गयी अर्जी को चार साल से लटकाये रखने पर कड़ी नाराजगी जतायी है।
कोर्ट ने प्रमुख सचिव कृषि को तीन सप्ताह के भीतर उक्त किसान की अर्जी पर निर्णय लेने का आदेश दिया है। साथ ही कोर्ट ने प्रमुख सचिव को यह भी निर्देश दिया है कि वह 30 दिन के अंदर एक जाचं कराकर जिस अधिकारी की वजह से किसान की अर्जी तय करने में देरी हुई, उसकी जिम्म्ोदारी तय करें। पीठ ने प्रमुख सचिव को कहा है कि वह कृत कार्रवाई की रिपोर्ट सीनियर रजिस्ट्रार के जरिये कोर्ट में दाखिल करें।
यह आदेश जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की एकल पीठ ने किसान राम चंद्र यादव की ओर से 2021 में दाखिल एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकरण को देखकर लगता है कि सरकारी अधिकारी समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति के प्रति लापरवाह हो गये हैं।
सरकारी कर्मियों का खत्म होगा इंतजार, जल्द प्रोन्नति का तोहफा देगी सरकार
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सरकार ने किसानों की भलाई के लिए जो स्कीम बनायी उसका लाभ देने के लिए निर्णय लेने में सरकारी मशीनरी को चार साल से अधिक लग गये हैं और अभी भी किसान स्कीम का लाभ पाने के लिए इधर-उधर भटक रहा है, जबकि उसके मुताबिक वह स्कीम का लाभ पाने का हकदार है।
उल्लेखनीय है कि याची ने 2017 में ग्रामीण बैंक आफ आर्याव्रत से केसीसी लोन लिया था। योगी सरकार ने पहले कार्यकाल में शपथ लेते हुए अपने वादे को पूरा करते हुए किसानों के लिए कर्ज माफी की योजना ले आयी। याची कथित रूप से उस योजना के तहत पात्र था। उसने 27 दिसम्बर 2017 को बैंक को लिखा कि उसे योजना का लाभ देते हुए उसका कर्ज माफ किया जाये। बैंक ने कर्ज माफी के अप्रूवल के लिए प्रकरण जिला स्तरीय कमेटी के सामने भेज दिया।
कमेटी ने 6 जनवरी 2020 को प्रकरण राज्य सरकार की संस्तुति के लिए भेज दिया । इस सब में साल दर साल बीतते जा रहें हैं किन्तु अभी तक किसान की अर्जी पर सरकारी निर्णय नहीं हो पाया। इस पर पीठ ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि जिम्मेदार अधिकारी के प्रति सख्त रवैया अपनाने की जरूरत है।