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जंगल में फैली आग की तरह व्यवहार करते हैं ऐसे स्वभाव वाले मनुष्य

Desk by Desk
06/08/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, फैशन/शैली, राष्ट्रीय
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लाइफ़स्टाइल डेस्क। आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार दुष्ट व्यक्ति किसी का भी बुरा कर सकते हैं इसी पर आधारित है।

“वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है, अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते हैं।” आचार्य चाणक्य

आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि जंगल की आग हमेशा ठंडक देने वाली चंदन की लकड़ी को भी जला देती है ठीक इसी प्रकार से दुष्ट व्यक्ति जब बुरा करने पर उतर आता है तो वो किसी का भी बुरा कर सकता है। यहां पर आचार्य कहना चाहते हैं कि किसी कारणवश जब जंगल में आग लग जाती है तो वो अपनी चपेट में सभी लकड़ियों को ले लेता है। उस वक्त जंगल में फैली आग ये नहीं देखती कि उसे किसे अपनी चपेट में लेना है या नहीं। आग की प्रवृत्ति सब कुछ जलाकर खाक करने की होती है। वो अपनी चपेट में चंदन की लकड़ी को भी ले लेती है।

चंदन की लकड़ी की तासीर ठंडी होती है। यानी कि बाकी लकड़ियों की तुलना में सबसे ठंडी चंदन की लकड़ी होती है। इसी वजह से मनुष्य की मृत्यु के बाद उसकी चिता के लिए चंदन की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। ताकि मरने के बाद उसका मन शांत रहे। लेकिन ये ठंडी प्रवृत्ति वाली लकड़ी भी जंगल में आग लगने पर खुद को बचा नहीं पाती और आग की चपेट में आकर भस्म हो जाती है। ठीक इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति के मन में दुष्टता यानी कि छलकपट, राग द्वेष भरा होता है तो वो बुरा करने वक्त ये नहीं सोचता कि वो किसका बुरा करने जा रहा है। वो बस अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप ही काम करता है।

ऐसा करने पर उसकी चपेट में कई बार ऐसे व्यक्ति आ जाते हैं जो स्वभाव के भले होते हैं। लेकिन दुष्ट व्यक्ति उनके साथ ही बुरा ही व्यवहार करता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि दुष्ट व्यक्ति अगर अपनी दुष्टता पर उतर आए तो वो किसी का भी अहित कर सकता है।

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