सुप्रीम कोर्ट ने NEET और JEE की परीक्षा को लेकर भले ही हरी झंडी दे दी है लेकिन अभी भी छात्र मांग कर रहे हैं कि परीक्षा को स्थगित किया जाए। छात्रों का कहना है कि कोरोना संकट और बाढ़ के बीच परीक्षा नहीं होनी चाहिए। छात्रों का कहना है कि जहां कोरोना संकट में परीक्षा होने से संक्रमण बढ़ने का खतरा है। वहीं बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के छात्रों के लिए बिना किसी पर्याप्त साधन के परीक्षा केंद्र पर पहुंचना संभव नहीं है। इसे कुछ समय के लिए टाल दिया जाए। अब इस विषय पर विपक्षी पार्टी के नेता भी सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि परीक्षा को लेकर छात्रों की बात सुनी जाए।
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करियर काउंसलर जुबिन मल्होत्रा ने बताया, इंजीनियरिंग और मेडिकल C में दाखिला लेने के लिए JEE और NEET परीक्षा से गुजरना पड़ता है। भारत में बिना इस परीक्षा के दूसरा कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में छात्रों को परीक्षा देना अनिवार्य है। उन्होंने कहा की ‘कोरोना संकट के कारण पहले ही परीक्षा को कई बार टाला गया है लेकिन अब परीक्षा को टालना सही नहीं होगा। यदि परीक्षा का आयोजन नहीं किया जाता है तो इससे बच्चे का साल बर्बाद हो सकता है और उसका करियर भी प्रभावित हो सकता है। एक साल की कीमत क्या होती है। परीक्षा में बैठने के लिए उम्र की योग्यता भी होती है अगर किसी छात्र की उम्र इस साल निकल गई तो वह मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेने का उसका सपना पूरा नहीं हो पाएगा।। वह एक छात्र ही समझ सकता।
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करियर काउंसलर जुबिन ने कहा कि इस साल अगर परीक्षा नहीं होती है तो इससे सिर्फ छात्रों को ही नुकसान नहीं होगा बल्कि परिवार को आर्थिक चोट भी पहुंचेगी जो पेरेंट्स 11वीं-12वीं के समय से ही इन परीक्षाओं की तैयारी के लिए बच्चे को कोचिंग सेंटर भेजना शुरू कर देते हैं। उनका पैसा परीक्षा न होने के कारण बर्बाद हो सकता है। यदि बच्चे का दाखिला इस साल नहीं होता है तो माता-पिता का पैसा पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा। इस विषय पर भी सोचने की जरूरत है। कोरोना संकट में कई लोगों की नौकरियां गई हैं। आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है। वहीं पेरेंट्स बड़ी परेशानी के साथ अपने बच्चे की कोचिंग फीस भरते हैं।