कानपुर| आज चाहे ई-मेल हो या व्हॉट्सएप हम तेजी से हिन्दी लिख सकते हैं। अन्य भारतीय भाषाएं भी इसी तरह लिखते हैं। यदि लिखने में परेशानी हो रही हो तो इसे बोलकर लिखा जा सकता है। जो बोलते हैं, शब्दशः वैसा ही लिख जाता है। यह काम एक या दो दिन में नहीं, बल्कि चार दशकों की मेहनत का परिणाम है। इसमें आईआईटी, कानपुर की भूमिका अहम है।
जानें कैसे और कब हिन्दी बनी भारत की आधिकारिक भाषा
आईआईटी, कानपुर में एक समय ऐसा था जब ज्यादातर शिक्षक या छात्र केवल अंग्रेजी जानते थे। संस्थान ऐसे स्थान पर था जहां लोगों का हिन्दी बोलने वालों से हर पल वास्ता रहता था। ऐसे में शुरुआत से ही यहां हिन्दी पर ध्यान दिया गया। एक समय ऐसा भी आया जब हिन्दी विभाग का सृजन भी हुआ। इसमें हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार रहे गिरिराज किशोर की भूमिका अहम रही।
आईआईटी कानपुर के आरएमके सिन्हा और वीना बंसल की भूमिका अहम रही। करीब तीन दशक तक इन्होंने देवनागरी पर शोध किया। एक-एक अक्षर को कम्प्यूटर की भाषा में ढाला। इनके उच्चारण को इसमें समाहित किया। इसे कम्प्यूटर की भाषा बनाने में देश के अन्य संस्थान जैसे सीडैक भी साथ आए।
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आईआईटी के प्रोफेसर आर प्रभाकर ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए एक ऐसी धार्मिक साइट बनाई जहां वेद-पुराण को पढ़ा जा सकता है। इस साइट पर दुनिय़ा भर के लोग जुड़ कर अपना ज्ञान बढ़ाते हैं। आईआईटी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने एक शोध पत्र-ए जर्नी फ्रॉम इंडियन स्क्रिप्ट्स प्रोसेसिंग टु इंडियन लैंग्वेज प्रोसेसिंग का हवाला देते हुए बताया कि इसमें हिन्दी के कम्प्टूरीकरण की पूरी कहानी दर्ज है।