राजनीति की प्रयोगशाला समझे जाने वाले उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह दो कारणों से जाने जाते हैं। पहला कारण है नकल अध्यादेश और दूसरा कारण है बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे का विध्वंस। वर्ष 1991 में यूपी में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और पहले शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नकल अध्यादेश के दम पर गुड गवर्नेंस का दावा किया था। बोर्ड परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों को जेल भेजने वाले इस कानून के चलते कल्याण सिंह की छवि गंभीर प्रशासक वाली बन गई थी। उत्तर प्रदेश में किताब रखकर परीक्षा में कदाचार छात्रों के लिए जेल भेजने का माध्यम बन गया था। इस कानून में कक्ष निरीक्षकों को भी जेल भेजने का प्रावधान किया गया था।
बाबरी मस्जिद विध्वंस संघ परिवार और हिंदू संगठनों का चिरप्रतीक्षित ख्वाब था। इसके लिए 425 में 221 सीटें लेकर आने वाली कल्याण सिंह सरकार ने अपनी कुर्बानी दे दी। सरकार भले ही चली गई थी लेकिन कल्याण की देश में छवि हिंदू हृदय सम्राट वाली जरूर बन गई थी। वे न केवल राष्ट्रीय स्वयं संघ की विचारधारा पर खरे उतरे थे बल्कि उसी हिसाब से भारतीय राजनीति में उनका वर्चस्व भी बढ़ा था। उस समय लोगों की जुबान पर दो ही नाम थे – केंद्र में अटल और यूपी में कल्याण। 1997 में दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद कल्याण सिंह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से पंगा लेने के लिए जाने गए। अटल बिहारी वाजपेयी से तो उन्होंने यहां तक कह दिया था कि एमपी बनेंगे तभी तो पीएम बन पाएंगे। भाजपा में पार्षद रहीं उनकी पारिवारिक मित्र कुसुम राय को लेकर भी वे राजनीतिक चर्चा के केंद्र में रहे। प्रशासन में कुसुम राय का वर्चस्व सिर चढ़कर बोल रहा है। कल्याण सिंह के चलते कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था। बाद में कल्याण सिंह और कुसुम राय दोनों ही भाजपा से निकाल दिए गए। यह और बात है कि बाद में कुसुम राय भाजपा से ही राज्यसभा सांसद बनीं। कल्याण भी भाजपा में लौटकर आए। सांसदी लड़े, हारे और फिर पार्टी छोड़ दी।
कल्याण भाजपा के उन जुझारू नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने सन 1962 में महज 30 साल की उम्र में जनसंघ से अलीगढ़ की अतरौली सीट से चुनाव लड़ा। पराजित भी हुए लेकिन हार नहीं मानी। पांच साल 1967 में जब फिर चुनाव हुए तो वे कांग्रेस प्रत्याशी को 4 हजार वोटों से शिकस्त देने में कामयाब रहे। इसके बाद वे अतरौली से 8 बार विधायक चुने गए।
यह वह समय था जब उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस विरोधी राजनीति को सफल बनाया था। हिंदुस्तान में हरित क्रांति हुई थी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की स्थिति सुधरी थी। इनमें से ज्यादातर किसान अन्य पिछड़ी जाति के थे। ऐसे में कल्याण सिंह बड़े आराम से जनसंघ में पिछड़ी जातियों का चेहरा बनने लगे। 1977 की जनता सरकार में पहली बार पिछड़ी जातियों का वोट प्रतिशत 35 के करीब था।