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पंचायत चुनाव में चक्रानुक्रमणीय आरक्षण लागू कर योगी ने साधे एक तीर से कई निशाने

आईएएस एनपी पांडेय को किया सस्पेंड

आईएएस एनपी पांडेय को किया सस्पेंड

उत्तर प्रदेश सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए चक्रानुक्रमणीय आरक्षण सूची जारी कर दी। इस बावत नियमावली पहले ही जारी हो चुकी थी। इससे राज्य में महिलाओं, दलित और पिछड़ी जाति के लोगों का सामाजिक वर्चस्व भी बढ़ेगा। वे सशक्त होंगे तो इसका असर प्रदेश के विकास पर भी व्यापक रूप से दिखेगा। जिला, नगर, ब्लॉक और गांवों का चक्रानुक्रम आधारित आरक्षण कर योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं।

इस बहाने सरकार ने दलितों,पिछड़ों और महिलाओं को अपने अनुकूल करने की मुकम्मल कोशिश भी की है। इससे पंचायतों में वर्षों से चले आ रहे परिवारवादी कॉकस को तोड़ने में उसे मदद मिलेगी,वहीं इसे लेकर उत्पन्न होने वाले असंतोष की जड़ में अवसर प्राप्ति का मट्ठा भी पड़ेगा। महिला सशक्तीकरण अभियान चलाने वाली योगी सरकार ने महिलाओं को सशक्त करने की भी इस बहाने भरपूर कोशिश की है। देखा जाए तो इस नयी आरक्षण व्यवस्था से दलितों और पिछड़ों की राजनीति करने वाले बड़े राजनीतिक दलों को भी झटका लगेगा।

यह और बात है कि पंचायत चुनाव कोई भी दल अपने पार्टी सिंबल पर नहीं लड़ता रहा है लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा और सपा समर्थित प्रत्याशी चुनाव लड़े और जीते। बाद में बसपा ने भी कुछ जीते प्रत्याशियों को बसपा समर्थित बताया। इस बार भी कुछ ऐसा ही होगा। भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने जिस तरह संकेत दिए हैं कि पार्टी के किसी सांसद, विधायक या मंत्री के परिजन चुनाव न लड़ें तो इसका मतलब है कि जिला पंचायत, नगर पंचायत के अहम पदों पर नजर गड़ाए लोगों को इससे झटका लगा है। और अगर भाजपा इस तरह की पहल करती है तो इससे सपा, बसपा और कांग्रेस पर भी नैतिक दबाव बनेगा।

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इसका मतलब साफ है कि कार्यकर्ताओं का हक अब बड़े मठाधीश छीन नहीं पाएंगे। इस लिहाज से यह निर्णय बेहद अहम साबित होगा। किसान आंदोलन के मद्देनजर पंचायत चुनाव कराने का जो अदालती दबाव विपक्ष ने सरकार पर बनाया था,योगी सरकार ने अपने एक प्रयास से उसकी हवा निकाल दी है। रोटेशन आधारित इस आरक्षण प्रक्रिया के चलते प्रदेश में महिलाओं का दबदबा बढ़ेगा,इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

उत्तरप्रदेश की 58194 ग्राम पंचायतों में 19659 महिला प्रधान चुनी जाएंगी। जिला पंचायत की 75 में से 25 सीटों पर महिलाओं का कब्जा होगा। ऐसी फूलप्रूफ व्यवस्था कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता में 33 प्रतिशत भागीदारी की महिलाओं की चिर प्रतीक्षित मांग को भी पूरा कर दिया है। इतना ही नहीं,उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की जिला पंचायत पर भी महिला ही काबिज होगी।

यहां की जिला पंचायत अध्यक्ष भी अनुसूचित जाति की महिला बनेगी। शामली बागपत,लखनऊ, कौशाम्बी,सीतापुर और हरदोई में जहां अनुसूचित जाति की महिला जिला पंचायत अध्यक्ष बनेगी,वहीं संभाल,हापुड़,एटा,बरेली, कुशीनगर,वाराणसी और बड़ों की जिला पंचायत अध्यक्ष ओबीसी की होगी। अनारक्षित जिला पंचायतों में भी 12 जिला पंचायतें कासगंज, फिरोजाबाद, मैनपुरी, मऊ, प्रतापगढ़, कन्नौज, हमीरपुर, बहराइच, अमेठी, गाजीपुर, जौनपुर और सोनभद्र महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं। महिला प्रथम की इस नीति से सरकार महिलाओं की सहानुभूति का लाभ लेना चाहेगी।

वैसे भाजपा की कोशिश गांव-गांव अपनी पैठ मजबूत करने की है। ऐसेमें अपने समर्थित उम्मीदवारों को जिताना उसकापरम लक्ष्य होगा। विपक्ष भी पंचायतों में अपनी पैठ चाहेगा। इस लिहाज से इस चुनाव का महत्व सहज ही बढ़ जाता है। अनुसूचित जाति के लिए 171 सीटें छोड़ी गई है,जिनमें से 86 सीटों पर इसी जाती की महिलाएं ब्लॉक प्रमुखी का चुनाव लड़ेंगी। अन्यपिछडा वर्ग के लिए आरक्षित 223 सीटों में से 97 इस वर्ग की महिलाओं के लिए है ।

जिला पंचायत में अनुसूचित जाति के लिए 16,अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 20 सीटें आरक्षित कर योगी सरकार ने सूबे में यह संदेश देने की कोशिश की है कि ववाह सबके साथ और सबके विकास की अवधारणा में यकीन रखती है और इसके इतर जाना उसे पसंद नहीं है।
कोरोना महामारी के चलते पंचायत चुनाव तय समय पर नहीं हो पाए और ग्रामप्रधानों के वित्तीय अधिकार अधिकारियों के हाथ में चले गए थे। उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। कदाचित ऐसा न होता तो स्थिति ज्यादा मुुफीद होती, लेकिन जब जागे तभी सवेरा। अदालत के निर्देश के बाद सक्रिय हुई योगी आदित्यनाथ सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण नियमावली जारी कर दी है। चक्रानुक्रम यानी रोटेशन के तहत आरक्षण का लाभ पंचायतों को तो होगा ही, आरक्षण से वंचित तबका भी अब ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में जोर आजमा सकेगा। एक ही जाति के व्यक्ति के पास अगर पंचायती हो तो बाकी जाति के लोगों में असंतोष का भाव पैदा होता है। यह स्थिति पंचायत के विकास में रोड़े अटकाती है।

सरकार ने इस बावत न केवल समझा है बल्कि असंतोष की जड़ पर ही प्रहार करने की योजना बनाई है। इससे गांव और शहर के बीच भी संतुलन बनेगा। आरक्षण नियमावली पर कुछ राजनीतिक दलों को असंतोष हो सकता है, उन्हें नाराजगी हो सकती है लेकिन इस दिशा में प्रयास तो बहुत पहले ही हो जाने चाहिए थे लेकिन देर आयद- दुरुस्त आयद की राीति नीति के तहत जिस तरह योगी सरकार आगे बढ़ रही है। उससे प्रदेश में खासकर पंचायती क्षेत्रों चाहे वह गांव हो, ब्लॉक हो, नगर होे या जिला,व्यवस्था बदलेगी और काम के स्वरूप में भी नवीनता देखने को मिलेगी। बहुत सारे गांव, ब्लॉक, नगर व जिला पंचायतों के वार्ड ऐसे थे जिनका कभी आरक्षण हुआ ही नहीं।

एक ही परिवार के हाथ में प्रधानी और पंचायती का दायित्व रहा। पंचायतों के इस वंशवादी चरित्र को तोड़ना मौजूदा दौर की सबसे बड़ी जरूरत थी। सरकार ने इस जरूरत को समझा ही नहीं, बल्कि पंचायतों में सुधारों के दृष्टिगत उसमें सुधार-परिष्कार की दिशा में भी वह आगे बढ़ी,इसके लिए उसे साधुवाद दिया जाना चाहिए। सामान्य निर्वाचन वर्ष 1995, 2000, 2010 और वर्ष 2015 में अनुसूचित जनजातियों को आवंटित जिला पंचायतें अनुसूचित जनजातियों को आवंटित नहीं की गई हैं और अनुसूचित जातियों को आवंटित जिला पंचायतें अनुसूचित जातियों को आवंटित नहीं हुई हैं।

इसी तरह पिछड़े वर्गों को आवंटित जिला पंचायतें पिछड़े वर्गों को आवंटित नहीं की गई हैं। इससे मोनोपोली टूटेगी। किसी जाति विशेष का वर्चस्व टूटेगा। बदलाव होगा तो इससे विकास कार्यों में कुछ नयापन भी देखने को मिलेगा।

सरकार का प्रयास रहा है कि चक्रानुक्रम आरक्षण प्रणाली के तहत एक भी पंचायत ऐसी न हो जो जातिगत आरक्षण से वंचित रह जाए। अपने इस प्रयास में वह बहुत हद तक सफल भी रही है।मतलब यह कि हर जाति के लोगों को इस बार चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। किसी के साथ कोई भेदभाव न हो, इस दिशा में उठाया गया यह कदम बेहद सराहनीय है। खास बात यह है कि वर्ष 1995 से अब तक के 5 चुनावों में जो पंचायतें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होती रहीं और ओबीसी के आरक्षण से वंचित रह गई, वहां ओबीसी का आरक्षण होना बेहद मायनेखेज है।

अखिलेश सरकार में वर्ष 2015 में ग्राम पंचायतों का आरक्षण शून्य मानकर नए सिरे से आरक्षण लागू किया गया था। क्षेत्र व जिला पंचायतों में वर्ष 1995 के आरक्षण को आधार मानकर सीटों का आरक्षण चक्रानुक्रम से कराया गया था। योगी सरकार आरक्षण चक्र को शून्य करने के पक्ष में हरगिज नहीं थी। चुनाव में सभी जाति-वर्ग को मौका मिले और पंचायती सरकार किसी एक परिवार या वंशवाद की शिकार न हो जाए, इस लिहाज से भी ऐसा करना जरूरी हो गया है।

चुनाव देर से हों, कोई बात नहीं लेकिन अगर सबके विकास को लक्ष्य रखाकर अगर कोई योजना बनती है तो उसका असर भी दिखता है। योगी सरकार के इस निर्णय का भी असर दिखेगा, इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है। किसानों के आंदोलन के बीच इस तरह का चक्रानुक्रम आरक्षण सरकार के प्रति पंचायतों पर वर्षों से कुंडली मारे बैठे कुछ लोगों की नाराजगी का सबब भी बन सकता है लेकिन काम तो वही करने चाहिए जिसमें सबका हित हो। सरकार तो सबकी होती है तो उसके कामकाज में भी वह बात झलकनी चाहिए। मौजूदा आरक्षण प्रणाली इसी ओर इंगित करती है।

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