सियाराम पांडेय ‘शांत’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय महायोजना का श्रीगणेश कर दिया है और विश्वास जताया है कि अब योजनाएं फाइलों में नहीं उलझेंगी, समय पर पूरी होंगी। अगर ऐसा होता है तो यह देश की बड़ी उपलब्धियों में से एक होगा। वैसे आजादी के बाद का इतिहास तो यही रहा है कि इस देश में विकास योजनाएं तो खूब बनीं लेकिन वे क्रियान्वयन के धरातल पर कभी गति नहीं पकड़ पाईं। देश के बुनियादी ढांचों से जुड़ी परियोजनाओं का इतिहास बेहद निराशाजनक रहा है। दो सौ से अधिक विकास परियोजनाएं विभागीय लापरवाही और लेटतीफी के मकड़जाल में उलझी हुई हैं। इस विलंब के चलते उनकी लागत भी काफी बढ़ गई है। जिसका व्यय भार भी देशवासियों को भुगतना पड़ रहा है और वे उन विकास परियोजनाओं के लाभ से भी वंचित हैं। इसे विधि की विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाएगा? ऐसे में भारी—भरकम योजनाओं के विकास से ही बात नहीं बनेगी, उसके क्रियान्वयन पर भी ध्यान केंद्रित होगा। नौकरशाहों और उनकी कार्यशैली पर भी अंकुश लगाना होगा, तभी इस देश को आगे ले जा पाना संभव हो सकेगा।
इसमें संदेह नहीं कि साढ़े सात साल के अपने प्रधानमंत्रित्व में न केवल देश पर लगी काहिलियत,लापरवाही और भ्रष्टाचार की साढ़ेसाती को दूर करने का प्रयास किया है बल्कि वर्षों से लंबित परियोजनाएं भी या तो पूर्ण हो चुकी हैं, लोकार्पित हो चुकी हैं अथवा वे पूर्ण होने की ओर अग्रसर हैं। इस बीच केंद्र सरकार ने कुछ नई योजनाओं की भी शुरुआत की है। जाहिर है, उसके दूरगामी परिणाम होंगे। देश में योजनाओं की कमी नहीं है। योजनाएं बनती रहती हैं। उनकी जोर—शोर से घोषणाएं भी होती हैं लेकिन क्रियान्वयन के स्तर पर उनका फलितार्थ नगण्य ही होता है।
पीएम गतिशक्ति योजना के तहत 100 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। रेल और सड़क समेत 16 मंत्रालयों को डिजिटली जोड़ा जा रहा है। उम्मीद है कि इस योजना से संरचनात्मक विकास में तेजी आएगी। योजनाएं तेजी के साथ क्रियान्वित हो सकेंगी और फाइलों के मकड़जाल में नहीं उलझेंगी। इस मास्टर प्लान में किसी भी योजना के निर्माण, डिजाइन में भारतमाला, सागरमाला, अंतरदेशीय जलमार्ग, शुष्क भूमि, बंदरगाह, उड़ान जैसे विभिन्न मंत्रालयों और राज्य सरकार की ढांचागत परियोजनाओं को शामिल किया गया है। माना जा रहा है कि पीएम गति शक्ति’ योजना से परियोजनाओं की लागत तो घटेगी ही, उसके रखरखाव पर भी कम खर्चीला होगा। इससे रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे। 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से इसकी घोषणा की थी और 13 नवंबर को शारदीय नवरात्र के आठवें दिन उन्होंने इस योजना का आगाज भी कर दिया। शक्ति संच के पर्व पर देश की प्रगति को गति देने की शक्ति करा चिंतन—मनन और उस दिशा में आगे बढ़ना भी अपने आप में बड़ी बात है।
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प्रधानमंत्री को पता है कि सड़कों के निर्माण के बाद ही केबल बिछाने, सीवर लाइन डालने जैसे कार्य होते हैं। इससे एक ही कार्य के लिए दो—तीन बार पैसे खर्च करने पड़ते हैं। अगर विभागों के बीच आपसी तालमेल हो तो पैसों की इस बेवजह बर्बादी से बचा जा सकता है। सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च होने के बाद कई परियोजनाएं इसलिए स्थगित हो जाती हैं क्योंकि उन्हें वन और पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिल पाती। ‘पीएम गति शक्ति योजना’ से 16 मंत्रालयों का एक ग्रुप बनाने के पीछे प्रधानमंत्री की सोच यह है कि कार्ययोजना बनने और शुभारंभ से पहले उक्त विचार आपास में समन्वय स्थापित कर सकें ताकि कार्य के दौरान व्यवधान जैसे हालात न बनें। रेलवे, सड़क परिवहन, पोत, आईटी, टेक्सटाइल, पेट्रोलियम, ऊर्जा, उड्डयन जैसे मंत्रालयों की जो परियोजनाएं चल रही हैं या जिन परियोजनाओं को वर्ष 2024—25 तक पूरा होना है, उन्हें ‘गति शक्ति योजना’ के तहत डालने का विचार दूरदर्शिता की उड़ान नहीं तो और क्या है?
माना जा रहा है कि गति शक्ति योजना से देश में उड़ान के तहत क्षेत्रीय संपर्क तेज होंगे। वर्ष 2024-25 तक एयरपोर्ट, हेलीपोर्ट और वाटर एयरोड्रम्स की संख्या बढ़कर 220 हो जाएगी। दो लाख किमी लंबाई तक भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का विस्तार हो जाएगा। रक्षा उत्पादन भी बढ़ेगा। करीब 20 हजार करोड़ रुपये के निवेश से उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो डिफेंस कॉरिडोर बनाने की योजना है। पीएम गति शक्ति योजना से 2024-25 तक देश में रेलवे की कार्गो हैंडलिंग क्षमता में 400 मीट्रिक टन का इजाफा होना है। दो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बन रहे हैं, यह योजना उन्हें भी प्रभावी गति देने का काम करेगी।
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वर्ष 2024-25 तक देश में गैस पाइपलाइन नेटवर्क को दोगुना कर 34,500 किमी तक करने की सरकार की मंशा है। वर्ष 2027 तक हर राज्य को प्राकृतिक गैस पाइपलाइन से पहुंचाने की केंद्र सरकार की योजना को भी पीएम गतिशक्ति से संबल मिलेगा। सरकार की योजना में गति शक्ति की अहम भूमिका होगी। दूरसंचार विभाग द्वारा 35 लाख किमी का ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क बिछाने और ऊर्जा मंत्रालय द्वारा ट्रांसमिशन नेटवर्क बढ़ाकर 4.52 लाख किमी सर्किट तक करने को भी यह योजना बल प्रदान करेगी।
भारत में तकरीबन 200 मेगा फूड पार्क बनाने, फिशिंग क्लस्टर बढ़ाकर 202 करने, 15 लाख करोड़ के टर्नओवर वाले 38 इलेक्ट्रॉनिक क्लस्टर बनाने, 90 टेक्सटाइल क्लस्टर बनाने और 110 फार्मा एवं मेडिकल डिवाइस क्लस्टर बनाने में भी मिशन शक्ति राष्ट्रीय महायोजना की बहुत बड़ी भूमिका होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर यह कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री गति शक्ति-राष्ट्रीय मास्टर प्लान 21वीं सदी के भारत की गति को शक्ति देगा। अगली पीढ़ी के इंफ्रास्ट्रक्चर और ‘मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी’ को इस राष्ट्रीय योजना से गति शक्ति मिलेगी। इस योजना से सभी प्रोजेक्ट अब तय समय पर पूरे होंगे और टैक्स का एक भी पैसा बर्बाद नहीं होगा तो यह अपने आप में बड़ा आश्वासन है। इस पर विश्वास किया जाना चाहिए और इस योजना को राजनीति से सर्वथा दूर रखा जाना चाहिए।
प्रगति के लिए इच्छा, प्रगति के लिए कार्य, प्रगति के लिए धन, प्रगति की योजना, प्रगति के लिए वरीयता जैसे मंत्र देते हुए प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ अगले 25 वर्षों के भारत के विकास की की बुनियाद रख दी है। उनका मानना है कि यह महायोजना भारत के आत्मबल को तो बढ़ााएगी ही, उसके आत्मविश्वास को आत्मनिर्भरता के संकल्प तक भी ले जाएगी। वैसे हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश की नौकरशाही काम को अविलंब करने में नहीं, उसे लटकाए रखने में यकीन रखती हैं। सिंचाईं परियोजनाएं इसका प्रमाण हैं।
अर्जुन सहायक नहर परियोजना वर्ष 2009 में शुरू हुई थी और वर्ष 2021 में पूरी हो पाई। उस समय इस योजना के लिए बजट मात्र 806.5 करोड़ रुपये था। इस योजना के पूरा होने में 2600 करोड़ रुपये खर्च हुए। छत्तीसगढ़ में इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित बोधघाट बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना भी चार दशक से अधिक समय से अधर में लटकी हुई है। केंद्र ने अपनी सहमति दे दी है। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के लिए संजीवनी मानी जाने वाली बाणसागर नहर परियोजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री ने कर दिया है। 1978 में शुरू हुई इस परियोजना के 20 साल तो काम शुरू होने में ही निकल गए थे। इस दौरान कई सरकारें आईं-गईं लेकिन इस परियोजना पर सिर्फ बातें हुईं। जो परियोजना 300 करोड़ रुपये में पूरी हो सकती थी, उसके लिए 3500 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े।
बाणसागर परियोजना मध्य प्रदेश राज्य वाला हिस्सा 2006 में ही बनकर तैयार हुआ जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था लेकिन उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस दौरान उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति चरम पर रही।
इसमें शक नहीं कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही वर्षों से लंबित पड़ी 108 सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का समयबद्ध कार्यक्रम तय कर दिया था। इन परियोजनाओं को नाबार्ड के जरिए 9020 करोड़ रुपये का वित्त उपलब्ध कराया गया। इन परियोजनाओं के पूरी हो जाने पर 1.18 करोड़ हेक्टेयर भूमि सिंचित हो सकेगी। इनमें से 18 परियोजनाएं 2016 में तो 36 परियोजनाएं 2017 में पूरी हो चुकी हैं। अन्य परियोजनाएं भी पूरी होने की ओर अग्रसर हैं।
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस सुचिंतित योजना के तहत देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं और जिस तेजी के साथ विकास योजनाएं पूरी हो रही हैं, उससे राजनीतिक खेमे में हलचल मच गई है। देश विजन से आगे बढ़ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास खुद का जिन भी है और देश को आगे बढ़ान की इच्छाशक्ति भी है। देश को पांच अब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में वे जिस तरह का औद्योगिक परिवेश चाहते हैं,राजनीतिक प्रतिरोध उस सोच के आगे खड़ा हो गया है। चीन जैसे कुछ देश भी नहीं चाहते कि भारत तरक्की करें, 25 साल की अपनी योजना बनाए, इस बहाने वह अनेक षड़यंत्र भी कर रही है लेकिन इन सब से बचते हुए भारत सरकार को महज अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना है और आज के समय की मांग भी यही है।