नवरात्रि (Navratri) का पर्व सिर्फ भक्ति नहीं बल्कि ऊर्जा का भी उत्सव है। कलश स्थापना और मूर्ति की दिशा शास्त्रों में सबसे अहम बताई गई है। देवी पुराण और स्कन्द पुराण जैसे ग्रंथों में पूजा की महिमा का विस्तार है। हालांकि इन ग्रंथों में किसी एक ही दिशा को कठोर नियम के रूप में नहीं बताया गया, लेकिन परंपरा, वास्तु और देवी-आनुशासन के मंत्रों से साफ संकेत मिलता है कि पूर्व और उत्तर-पूर्व को सर्वोत्तम दिशा माना गया है।
नवरात्रि (Navratri) केवल भक्ति का पर्व नहीं बल्कि ऊर्जा संतुलन का भी समय है। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि अगर घट स्थापना और देवी मूर्ति की दिशा सही न हो तो साधना का पूरा फल नहीं मिलता। यानी नवरात्रि (Navratri) की शुरुआत केवल पूजा-सामग्री से नहीं, बल्कि शास्त्रीय दिशा-निर्देशों से करनी चाहिए, ताकि देवी मां की कृपा अक्षय रूप में घर-परिवार पर बनी रहे।
स्कन्द पुराण का उल्लेख
स्कन्द पुराण में देवी पूजन की महिमा और घटस्थापना की विधियां विस्तार से बताई गई हैं। इसमें पूजा की शुद्धि, आह्वान मंत्र और नियमों का विस्तार है, लेकिन किसी एक ही दिशा को अपरिहार्य रूप से नहीं बताया गया। फिर भी पंडितों और वास्तु-शास्त्रियों के अनुसार ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा को देवताओं का द्वार कहा गया है। यही कारण है कि कलश इसी स्थान पर रखने की परंपरा चली आ रही है।
देवी पुराण का संदर्भ
देवी पुराण में मातृका देवताओं (सप्तमात्रिकाओं) की पूजा के संदर्भ में यह उल्लेख मिलता है कि मूर्तियां उत्तर की ओर मुख करके रखी जाएं। इसका तात्पर्य है कि देवी उपासना में उत्तर दिशा को विशेष फलदायी माना गया है। इसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए नवरात्रि की पूजा में भी देवी प्रतिमा को प्रायः पूर्व या उत्तर दिशा में रखा जाता है।
कलश और मूर्ति की दिशा
कलश स्थापना: उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में सबसे शुभ मानी जाती है।
मूर्ति/तस्वीर: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर स्थापित करनी चाहिए।
भक्त की दिशा: पूजन करने वाला प्रायः पूर्व की ओर मुख करके बैठता है, जिससे साधना सिद्ध होती है।
क्यों है इतना महत्व?
पूर्व दिशा को ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक माना गया है, जबकि उत्तर दिशा को स्थिरता और समृद्धि देने वाली दिशा बताया गया है। ईशान कोण देवताओं का प्रवेश द्वार है, जहां सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सबसे अधिक होता है। इसी कारण कलश और मूर्ति को इन्हीं दिशाओं में स्थापित करने की परंपरा है। नवरात्रि (Navratri) में घट स्थापना का महत्व केवल परंपरा तक सीमित नहीं बल्कि शास्त्र और पुराणों से जुड़ा हुआ है।
स्कन्द पुराण पूजा की विधि और घट की महिमा का वर्णन करता है, वहीं देवी पुराण उत्तर दिशा को विशेष महत्व देता है। इन संकेतों के आधार पर कलश को उत्तर-पूर्व और मूर्ति को पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापित करना ही सर्वोत्तम माना जाता है। इससे नवरात्रि की पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है और मां दुर्गा की कृपा सहज प्राप्त होती है।









