नई दिल्ली : दिव्यांग शारीरिक तौर पर अक्षम हो सकते हैं पर उनमें अपार संभावनाएं होते हैं। खुद के हौसले बुलंद हों और लोगों का थोड़ा सा सहयोग मिले तो वह भी आम इंसान की तरह ही कमाल कर के दिखा सकते हैं। यह कहना है तमाम दुविधा, समस्या और नकारात्मक माहौल से उबरकर केंद्रीय विद्यालय में मेंटल मैथ के शिक्षक हिमानी बुंदेला का। हिमानी की दोनों आंखों की रोशनी एक एक्सीडेंट में उस समय चली गईं जब वह 11वीं में थीं। बावजूद, हिमानी ने हिम्मत नहीं हारी और हौसलों से सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गईं। अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर पेश है ऐसे ही दिव्यांगजनों की कहानी, उन्हीं की जुबानी, जो आज दूसरों के लिए नजीर है…।
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पीसीएस अधिकारी आदर्श कुमार कहते हैं कि अपने जैसे दूसरे दिव्यांगों की मदद के लिए ही पीसीएस किया क्रैक
पांच साल की उम्र में पोलियो और कक्षा 7 में मेरी मस्तिष्क ज्वर से श्रवण शक्ति कम हो गई, लेकिन हार नहीं मानी। मैं खुद को दिव्यांग नहीं मानता था। बचपन से किताबों से गहरा लगाव रहा और वही मेरी सबसे बड़ी साथी बनी। शिक्षक जब क्लास में बोलते तो समझ नहीं पाता था तो उनके चेहरे और होठों से उनके बोल समझने लगा। ऐेसे ही इंटर कर कानपुर विश्वविद्यालय से स्नातक और पीजी किया। फिर 2010 में पुनर्वास विवि से बीएड विशेष शिक्षा, फिर एमएड, नेट-जेआरएफ और शोध किया।
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दूसरों के लिए कुछ करने के जुनून ने मुझे प्रतियोगी परीक्षाओं की ओर मोड़ दिया। इसमें शिक्षक डॉ. मृत्युंजय मिश्रा ने मार्गदर्शन किया। वर्ष 2015 में मैं शिक्षक बना तो लगा कि अब कुड बड़ा करना है। मैं निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता गया और अंत मे 2018 की पीसीएस परीक्षा में सफलता मिली और श्रम परिवर्तन अधिकारी के पद पर चयन हो गया।