नई दिल्ली| बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) ने स्वास्थ्य बीमा का प्रीमियम किस्तों में चुकाने की अनुमति दी थी। इसके बाद बीमा धारकों को प्रीमियम के किस्तों को मासिक, तिमाही या छमाही के साथ सालाना भुगतान का विकल्प मिला था। यह बीमा धारकों के हित में बड़ा फैसला माना गया था। हालांकि, अब यह बीमा धारक के लिए महंगा पड़ रहा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बीमा कंपनी किस्तों के माध्यम से प्रीमियम भुगतान पर 3-4 फीसदी नोडल चार्ज लगा रहे हैं।
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सूत्रों के अनुसार इरडा ने इस शुल्क की कोई सीमा तय नहीं की है। इसके बावजूद कई बीमा कंपनियां किस्तों में प्रीमियम भुगतान पर बीमा धारक से 3 से 4 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क ले रहे हैं। बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि ईएमआई के प्रबंधन पर आने वाले खर्च और निवेश की संभावनाओं के नुकसान की भरपाई के लिए बीमा कंपनी 2 से 3 प्रतिशत नोडल चार्ज लग सकती है। निवेश से होने वाली आमदनी के नुकसान और वित्तीय व्यय की भरपाई के लिए नोडल चार्ज वसूला जाता है।
इरडा से जुड़े सूत्र के अनुसार, प्राधिकरण ने किस्तों के भुगतान पर शुल्क की कोई सीमा नहीं तय की है क्योंकि भरोसा है कि बाजार की प्रतिस्पर्धा इसे सीमित रखेगी। सभी कंपनिया किस्तों में प्रीमियम के भुगतान की सहूलियत देंगी, ऐसे में फर्मों से उम्मीद की जाती है कि देरी से भुगतान पर वे ज्यादा पैसे नहीं लेंगी।
कोरेाना जैसी महामारी से लड़ने के लिए बीमा कंपनियां एक ऐसा पूल बनाना चाह रही हैं, जिसके जरिए महामारी के दौरान वित्तीय समस्याओं से निपटा जा सके। बीमा कंपनियां फंड का पूल बनाकर अर्थात फंड जुटाकर इससे एक इमरजेंसी प्रोग्राम तैयार कर सकती हैं जिससे किसी भी महामारी से होने वाले नुकसान के कारण अधिकांश को कवर मिल जाए। इस पूल की फंडिंग पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए की जा सकती है जिसमें सरकार और कंपनियां दोनों ही इस पूल में योगदान दे सकते हैं।
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कोरोना इलाज के नाम पर निजी अस्पतालों के महंगे चार्ज के खिलाफ बीमा कंपनियां सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है। कोरोना के कारण बीमा कंपनियों पर क्लेम का बोझ बढ़ा है। ऐसा इसलिए की निजी अस्पताल मोटा चार्ज कर रहे हैं। कोरोना के एक तय इलाज के लिए बीमा कंपनियां सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में हैं।