ISRO ने पिछले कई सालों में बड़े-बड़े कीर्तिमान बनाए हैं। यही वजह है इसरो अब अमेरिका के नासा जैसे स्पेस ऑर्गेनाइजेशन को कड़ी टक्कर दे रहा है। इसी बीच इसरो ने आज इतिहास रच दिया है। श्रीहरिकोटा से PSLV-C60 रॉकेट से 2 छोटे स्पेसक्राफ्ट (Spadex Mission) लॉन्च किए। ये पहली बार होगा जब इसरो पृथ्वी से 470 किलोमीटर ऊपर 2 रॉकेट्स की डॉकिंग और अनडॉकिंग करेंगे। यानी हजारों किमी। की रफ्तार से उड़ते हुए 2 स्पेसक्राफ्ट को पहले जोड़ा जाएगा फिर उन्हें अलग किया जाएगा।
भारत इस मिशन (Spadex Mission) की सफलता के बाद अमेरिका, रूस और चीन के एलीट क्लब में शामिल हो गया है। इसरो के इस मिशन का नाम है Space Docking Experiment यानी SpaDex दिया है। भारत के लिए ये गौरव की बात है कि इसरो ने अब इस डॉकिंग सिस्टम पर पेटेंट भी ले लिया है। क्योंकि, आमतौर पर कोई भी देश डॉकिंग और अनडॉकिंग की कठिन बारीकियों को शेयर नहीं करते हैं। इसलिए इसरो को अपना खुद का डॉकिंग मैकेनिज्म बनाना पड़ा।
PSLV-C60 रॉकेट से हुए लॉन्च
अंतरिक्ष में खुद का स्पेस स्टेशन बनाने और चंद्रयान-4 की कामयाबी का सपना इस मिशन (Spadex Mission) पर टिका है। इस मिशन में 2 स्पेसक्राफ्ट शामिल हैं। एक का नाम है टारगेट यानी लक्ष्य है। वहीं, दूसरे का नाम है चेजर यानी पीछा करने वाला। दोनों का वजन 220 किलोग्राम है। PSLV-C60 रॉकेट से 470 किमी की ऊंचाई पर दोनों स्पेसक्राफ्ट अलग दिशाओं में लॉन्च किए जाएंगे।
समझें डॉकिंग की प्रक्रिया
इस दौरान टारगेट और चेजर की रफ्तार 28 हजार 800 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच जाएगी। लॉन्च के करीब 10 दिन बाद डॉकिंग प्रक्रिया शुरू होगी। यानी टारगेट और चेजर को आपस में जोड़ा जाएगा। करीब 20 किलोमीटर की दूरी से चेजर स्पेसक्राफ्ट टारगेट स्पेसक्राफ्ट की तरफ़ बढ़ेगा। इसके बाद ये दूरी घटते हुए 5 किलोमीटर तक पहुंचेगी, फिर डेढ़ किलोमीटर होगी, इसके बाद 500 मीटर हो जाएगी।
जब चेजर और टारगेट के बीच की दूरी 3 मीटर होगी। तब डॉकिंग यानी दोनों स्पेसक्राफ्ट के आपस में जुड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। चेजर और टारगेट के जुड़ने के बाद इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर किया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया को धरती से ही कंट्रोल किया जाएगा। इसरो के लिए ये मिशन एक बहुत बड़ा एक्सपेरिमेंट है, क्योंकि भविष्य के स्पेस प्रोग्राम इस मिशन पर टिके हैं।
चंद्रयान-4 के लिए है अहम
चंद्रयान-4 मिशन में इसी डॉकिंग-अनडॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल होगा। यानी चंद्रयान-4 मिशन की कामयाबी स्पेडेक्स की सफलता पर निर्भर करती है। नासा की तरह अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाने में इसी मिशन की तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा सैटेलाइट सर्विसिंग, इंटरप्लेनेटरी मिशन और इंसानों को चंद्रमा पर भेजने के लि