राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना दिवस पर नागपुर के ऐतिहासिक रेशिम बाग से स्वयंसेवकों और देशवासियों को संबोधित करते हुए संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा एक बार फिर सम्पूर्ण समाज की एकजुटता का आह्वान किया। हिन्दू-मुस्लिम एकता के सूत्र वाक्य को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि सबक सीखने के लिए इतिहास जानना जरूरी है कि कभी बर्बर मुगल आक्रमणकारी के रूप में भारत आए थे। पर आज जो यहां इस्लामी पूजा-पद्धित को मानने वाले हैं वे उनके वंशज नहीं है। इस सत्य को दोनों समुदायों को समझना और मानना होगा। हिन्दू समाज अपनी दुर्बलता को दूर कर संगठित हो ताकि वह उन्हें स्वीकार कर सके और इसी प्रकार मुस्लिम समाज भी कट्टरता, अलगाव और अपनी छोटी पहचान का अनुचित अहंकार छोड़कर देश की एकात्मता, अखंडता और भावनात्मक एकता के लिए आगे आएं।
नागपुर से राष्ट्र के नाम संबोधन में संघ प्रमुख ने कहा कि यह आजादी का स्वर्ण जयंती वर्ष है। 75 साल पहले हमें बहुत त्याग और बलिदान के बाद स्वतंत्रता मिली और उसके साथ ही विभाजन का दर्द भी मिला। हम चाहते हैं कि आज की पीढ़ी उस पीड़ा के सच को जाने, उससे सबक सीखे। हमें यह हमेशा याद रखना होगा जाति, वर्ग, भाषा, प्रांत और निजी अहंकारों के भेद में बंटे समाज के चलते हम पर शक, हूण, कुषाण से लेकर मुगलों और साम्राज्यवादियों तक ने आक्रमण किए और राज किया। मुगलों ने हमारे धर्म, संस्कृति, संस्कार, परम्परा और मंदिरों पर भीषण आघात किए। यह सारा इतिहास हमेशा नफरत पैदा करने के लिए जानना आवश्यक नहीं है बल्कि कलह मिटाने के लिए भी यह जानना जरूरी है कि वे कौन से कारक हैं जो नफरत पैदा करते हैं। उन कारकों को दूर कर हम अपनत्व का भाव पैदा कर सकते हैं। संघ प्रमुख ने कहा कि देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले अशफाक उल्ला खां से लेकर अब्दुल हमीद तक को आदर्श के रूप में स्थापित करने से एकता मजबूत होगी। उन्होंने कहा शीलवान और शक्तिशाली हिन्दू समाज का संगठन इसलिए भी आवश्यक है कि उसने विरासत और परम्परा से सभी मत-पंथों-विविधताओं-पूजा पद्धितियों का सम्मान किया है।
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उन्होंने सचेत कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले समाज को विघटित और कमजोर करने वाली जितनी भी शक्तियां थीं, वे आज भी सक्रिय हैं। आज भी हमारे धर्म, समाज, जाति और व्यवस्था के प्रति अश्रद्धा पैदा कर, उसे हेय और नीचा बताकर समाज को विभाजित कर राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने वाले निरंतर अपनी कोशिशें जारी रखें हुए हैं। ऐसे में स्वयंसेवकों को चाहिए कि वह अपने कार्य की गति तेज करें और समाज से संपर्क और संवाद के जरिए एक संगठित शक्ति सम्पन्न समाज की रचना के अपने लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर कार्य करें। देशवासियों से भी उन्होंने आह्वान किया कि वे इस कार्य में स्वयंसेवकों को सहयोग व समर्थन दें।
रा.स्व.संघ के सरसंघचालक (संघ प्रमुख) ने अपने संबोधन से पहले परम्परागत तरीके से शस्त्र पूजन कर शक्ति की आराधना की। उनके संबोधन से पूर्व संघ की नागपुर नगर ईकाई ने बहुत सुंदर घोष (संघ के बैंड दल) का प्रदर्शन किया। राष्ट्रभक्ति की अनेक मधुर धुनों से उन्होंने अपनी विशिष्टता का परिचय दिया। कोरोना से सावधानियों के दिशा-निर्देशों को देखते हुए इस बार बड़ी संख्या में लोगों को आमंत्रित नहीं किया गया था। नागपुर के स्वयंसेवकों को भी नगर में 48 अलग अलग स्थानों पर कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए एकत्र होकर संघ प्रमुख के भाषण का सीधा प्रसारण सुनने की व्यवस्था की गई थी। देश भर में संघ की शाखाओं में भी विजयादशमी के दिन स्थापना दिवस मनाया जाता है।
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उल्लेखनीय है कि संघ की स्थापना सन् 1925 में विजयादशमी के दिन ही नागपुर के मोहिते के बाड़ा में हुई थी। संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने कुछ बाल स्वयंसेवकों को लेकर खेलकूद से जो संगठन शुरू किया था वह आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। संघ विचार से प्रेरित सैकड़ों संगठन सामाजिक कार्यों और लोकजागरण में लगे हुए हैं। अपने स्थापना दिवस पर संघ परम्परागत रूप से नागपुर के रेशिम बाग में मुख्य कार्यक्रम आयोजित करता है। विजयादशमी पर दिया गया संघ प्रमुख का भाषण देश-समाज-राजनीति के लिए बहुत अहम माना जाता है।