पूजा के बाद आरती (Aarti) करना हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। आरती एक भक्तिमय क्रिया है जो हृदय से देवता के प्रति गहरा प्रेम, श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है। ऐसा माना जाता है कि आरती के दौरान जलाई गई ज्योति और गाए गए मंत्र देवता की उपस्थिति को आकर्षित करते हैं। आरती में उपयोग की जाने वाली धूप, कपूर और घी की सुगंध वातावरण को शुद्ध करती है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है। ऐसा माना जाता है कि पूजा के अंत में आरती करने से पूजा पूर्ण होती है और उसका फल प्राप्त होता है। यदि पूजा में कोई कमी रह गई हो तो आरती उसे पूरा करती है।
पूजा के बाद क्यों की जाती है आरती (Aarti) ?
आरती (Aarti) शब्द संस्कृत के ‘आरात्रिक’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है अंधकार का नाश करने वाली क्रिया। जब पूजा संपन्न हो जाती है, तब आरती द्वारा भगवान के सामने दीपक, कपूर या घी का दीया घुमाया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल श्रद्धा का प्रदर्शन है, बल्कि वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती है।
पुराणों में क्या कहा गया है?
स्कंद पुराण, पद्म पुराण और भागवत पुराण जैसे शास्त्रों में आरती (Aarti) को ईश्वर की सेवा का एक उत्कृष्ट रूप बताया गया है। माना जाता है कि पूजा के अंत में की गई आरती भगवान की उपस्थिति को स्थिर करती है और भक्तों के मन को शुद्ध करती है।
धार्मिक,वैज्ञानिक कारण क्या हैं?
मान्यता के अनुसार, आरती (Aarti) के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। यह अंतिम प्रक्रिया होती है जो पूरे अनुष्ठान को पूर्णता देती है। आरती को भगवान का स्वागत और विदाई दोनों माना जाता है।जब दीपक की लौ भगवान के समक्ष घुमाई जाती है, तो वह भक्त की आंतरिक भावना को दर्शाती है। आरती के बाद भगवान की ज्योति से दर्शन करना शुभ माना जाता है। वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाएं तो आरती में कपूर, घी और दीपक से निकलने वाली सुगंध और धुआं वातावरण को शुद्ध करने का कार्य करता है।
इसके अलावा घंटी या शंख की ध्वनि से मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और नकारात्मकता दूर होती है। इसलिए आरती (Aarti) न केवल एक धार्मिक प्रक्रिया है, बल्कि यह आत्मा को ईश्वर से जोड़ने का एक माध्यम है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर, पूजा स्थल में एक पवित्र और शुद्ध वातावरण बनाती है। यही कारण है कि आरती को हर पूजा का अभिन्न हिस्सा माना गया है।