वाराणसी। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू (Naidu) ने दो दिवसीय काशी दौरे के समापन पर शनिवार शाम अपने अनुभव को सोशल मीडिया के फेसबुक पेज पर साझा किया है। उपराष्ट्रपति ने लिखा है कि कल अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करने के बाद, भगवान शिव की नगरी, वाराणसी पहुंचा। मां गंगा के पश्चिमी तट पर बसी यह नगरी विश्व के सबसे प्राचीन जीवित शहरों में से एक है। श्रद्धालुओं के मन में काशी के प्रति विशेष आस्था रहती है। यह स्वयं ईश्वर की भूमि है, यह संस्कृति और संस्कारों का स्थान है, काशी भक्ति और मुक्ति की भूमि है। मेरा सौभाग्य ही था कि मैं बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी के दर्शन कर सका।
उन्होंने लिखा कि मैं और मेरी पत्नी ऊषा नायडू शाम को वाराणसी पहुंचे और सीधे दशाश्वमेध घाट पर होने वाली विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती देखने गए। कैसा दिव्य वातावरण था। एक अकथनीय, अविस्मरणीय दैवीय अनुभूति हुई। दियों से दीप्तिमान घाट, आरती की प्रतिक्षा में नावों में बैठे पर्यटक, मां गंगा की पूजा अर्चना करते पुरोहित, एक लय में लहराती असंख्य दियों की ज्योतियां- यह दृश्य देख कर मुझे पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के वो शब्द याद आ गए, जो उन्होंने गंगा के लिए कहे थे- “पुण्य सलिला गंगा उस भावनात्मक सूत्र का जीता जागता प्रतीक है जो भारत की एकता को बनाता है। हिमालय से निकली, देश के एक बड़े भाग से होकर गुजरती हुई, यह बंगाल के सागर में जा कर समाहित हो जाती है। इस विशाल नदी के नीले पानी की लहरों में भारत की सांस्कृतिक एकता का रूप निखर आता है।”
काशी यात्रा से आह्लादित उपराष्ट्रपति ने लिखा है कि मुझे यह देख कर विशेष संतोष हुआ कि आरती से पहले गंगा सेवा निधि के आयोजकों ने वहां उपस्थित दर्शकों से आग्रह किया कि वे इस नदी और उसके आसपास के परिवेश को स्वच्छ रखने का संकल्प लें। नदियां मानव सभ्यता की जीवनदायिनी रही हैं, हर किसी को चाहिए कि वो इन्हें सुरक्षित रखे, इनका संवर्धन करें।
-काशी विश्वनाथ के स्वर्णिम गर्भगृह का अनुभव
उपराष्ट्रपति ने लिखा कि आज सुबह मुझे अपनी पत्नी के साथ प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर देखने और वहां पूजा करने का सुयोग मिला। भगवान शिव का विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग, महादेव के पवित्रतम पीठों में से एक है। “विश्वेश्वर” या “विश्वनाथ” का अभिप्राय ही है विश्व का स्वामी तथा “ज्योतिर्लिंग” का तात्पर्य है ज्योति-स्तंभ जो अनंत भगवान शिव का प्रतीक रूप है। मैंने भगवान से, देश और अखिल विश्व में सुख, शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्रार्थना की। काशी विश्वनाथ मंदिर सिर्फ अपने आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के लिए ही विख्यात नहीं है बल्कि यह मंदिर भारतीय संस्कृति की अंतर्निहित शक्ति और उसकी जिजीविषा को भी प्रतिबिंबित करता है।
मंदिर की वर्तमान इमारत का निर्माण, 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा कराया गया था तथा 1839 में महाराजा रंजीत सिंह द्वारा मंदिर के दो शिखरों को स्वर्णपत्र से आच्छादित करवाया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर हमारी सनातन परंपरा, हमारी आस्थाओं और आततियों के विरुद्ध हमारे संघर्ष का गौरवशाली प्रतीक है। उन्होंने लिखा मुझे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर भी देखने का अवसर मिला, जिसका लोकार्पण हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया है। इस प्रोजेक्ट से काशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा के तट तक पहुंचने का रास्ता सीधा और सुगम हो गया है।
इस प्रोजेक्ट के अंर्तगत श्रद्धालु पर्यटकों के लिए अनेक सुविधाएं बनाई गई हैं, जैसे पर्यटक सुविधा केंद्र, वैदिक केंद्र, मुमुक्षु भवन, भोगशाला, नगर संग्रहालय, फूड कोर्ट आदि। मुझे जानकर खुशी हुई कि मंदिर का क्षेत्रफल जो पहले मात्र 3000 वर्ग फुट था, वह अब बढ़ कर लगभग 5 लाख वर्ग फुट हो गया है, जिससे पहले की अपेक्षा और अधिक श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ के दर्शनलाभ पा सकेंगे। पास के अन्नपूर्णा मंदिर का भी अपना समृद्ध इतिहास है। मुझे बताया गया कि मंदिर की प्रतिमा, जो शताब्दी पूर्व गैर कानूनी तरीके से दूसरे देश ले जायी गई थी, उसे वापस लाकर मूल मंदिर में स्थापित कर दिया गया है।
उपराष्ट्रपति ने लिखा बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद मैंने वाराणसी के प्रख्यात काल भैरव मंदिर में पूजा अर्चना की। भगवान काल भैरव, जो भगवान शिव के ही रौद्र रूप हैं, उनको काशी का संरक्षक देवता और ” काशी का कोतवाल” माना जाता है।
-पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति स्थल
उपराष्ट्रपति ने पड़ाव स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति स्थल पर जाने के अपने अनुभव को भी साझा किया है। उन्होंने लिखा है कि यह स्थल भारत की प्रख्यात सांस्कृतिक राजनैतिक विभूतियों में से एक, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की स्मृति को समर्पित है। यहीं 1968 में लखनऊ से पटना जाते समय, संदेहास्पद परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई थी। मातृभूमि की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देने वाले इस महान राजनेता की 63 फुट ऊंची प्रतिमा के चरणों में खड़ा होना, मेरे लिए भावुक क्षण था। स्मारक में 3डी प्रदर्शन की सुविधा भी है, जिसके माध्यम से दीनदयाल जी की जीवनयात्रा को आभासी रूप से प्रस्तुत किया जाता है। पूरा अनुभव यादगार रहा।
उन्होंने बताया कि दीनदयाल जी भारतीय संस्कृति और सभ्यता में रचे बसे थे, जिसके आधार पर ही उन्होंने अपनी “एकात्म मानवतावाद” की अवधारणा विकसित की। इसमें उन्होंने मनुष्य, समाज और प्रकृति की अंतर्निहित एकता प्रतिपादित की। यह अवधारणा भारत की ज्ञान परंपरा से ही जुड़ी हुई है। समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए “अंत्योदय” का विचार, दीनदयाल जी के दर्शन के केंद्र में रहा है। गांव, किसान, दलित, वंचित के लिए दीनदयाल जी के मन में विशेष स्थान था। दुर्बल वर्गों के उत्थान के लिए प्रयास करना, वंचितों के जीवन में खुशियां लाना, दीनदयाल जी को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
-गंगा सेवा निधि के विजिटर बुक पर लिखा
काशी दौरे के पहले दिन शुक्रवार शाम उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने अपनी पत्नी एम. ऊषा नायडू के साथ दशाश्वमेधघाट पर गंगा सेवा निधि की विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती देखी। आरती देखने के बाद उन्होंने निधि के विजिटर बुक पर अपना अनुभव लिखा। महादेव की नगरी वाराणसी में मां गंगा के दर्शन और आरती का सौभाग्य मिला।
दशाश्वमेध घाट पर प्रकृति और संस्कृति का सुंदर संगम देखकर मन अभिभूत हो गया। गंगा के तटों पर भारत की आत्मा का जीवंत रूप दिखता है और उत्तर में हिमालय से बंगाल की खाड़ी पर्यंत गंगा जी ने अपने पवित्र जल से सबको सींचा है। दशाश्वमेध घाट पर मां गंगा की मंत्रमुग्ध कर देने वाली आरती का आयोजन करने वाली गंगा सेवा निधि के सेवकों को मेरी ह्रदय से शुभकामनाएं मां गंगा सबका कल्याण करें।