हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का विशेष महत्व बताया गया है. इन्हीं धामों मे से एक है जगन्नाथ मंदिर, जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है. इस धाम से हर साल रथयात्रा निकाली जाती है, जिसे जगन्नाथ रथयात्रा ( Jagannath Rath Yatra ) के नाम से जाना जाता है. इस साल इस यात्रा की शुरुआत 1 जुलाई से होगी और इसमें लाखों लोग हिस्सा लेने के लिए पहुंचेंगे. धार्मिक यात्रा का महत्व अधिक होने के कारण देश ही नहीं विदेश से भी लोग इसका हिस्सा बनने के लिए आते हैं. लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़े रथयात्रा ( Jagannath Rath Yatra ) के बारे में मान्यता है कि इसमें शामिल होने मात्र से उन्हें सभी तीर्थों के पुण्य फल मिल जाते हैं. हर साल की तरह इस बार भी जगन्नाथ रथ यात्रा का महापर्व आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित किया जाएगा.
अगर आप भी जगत के नाथ की रथ यात्रा ( Jagannath Rath Yatra ) का हिस्सा बनने का प्लान बना रहे हैं, तो इससे पहले इससे जुड़ी इन खास बातों को एक बार आपको जान लेना चाहिए. जानें इस यात्रा से जुड़ी कुछ रोचक बातें…
तैयार किए जाते हैं तीन रथ
इस रथ यात्रा में तीन पवित्र रथों को तैयार किया जाता है, जिनमें से एक भगवान कृष्ण और दो उनकी भाई बलराम व बहन सुभद्रा को समर्पित होते हैं. इन रथों के रंग भी अलग रखे जाते हैं. बहुत कम लोग इस तथ्य को जानते हैं. श्री कृष्ण के रथ को गरुड़ध्वज कहा जाता है और इसका रंग सदा पीला या लाल रखा जाता है. वहीं बलराम जी के रथ को तालध्वज के नाम से जाना जाता है और इसका रंग लाल और हरा होता है. वहीं सुभद्रा जी के रथ का रंग काला या नीला रखा जाता है.
मौसी के घर जाते हैं भगवान जगन्नाथ
पुराने समय से ये मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Yatra ) के जरिए अपनी मौसी के मंदिर जाते हैं. रथयात्रा को गुंडीचा मंदिरतक ले जाया जाता है. कहते हैं कि तीनों देव और देवी यहां आकर आराम करते हैं. यहां आकर भी श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण की आराधना में लीन हो जाते हैं. भगवान जगन्नाथ की यात्रा आषाढ़ माह की द्वितीय तिथि को शुरू होती है और शुक्ल पक्ष के 11वें दिन वे अपने द्वार लौट आते हैं.
रथ में रहती हैं प्रतिमाएं
यात्रा के शुरू होने पर गजपति राजा यहां आते हैं और रथयात्रा ( Jagannath Rath Yatra ) की शुरुआत करते हैं. वे सोने की झाड़ू से भगवान के जाने तक का रास्ता साफ करते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि यात्रा के समाप्त होने के बाद भी कुछ दिनों तक भगवानों की प्रतिमाएं रथों में ही स्थापित रहती हैं. भगवान श्री कृष्ण, बलराम जी और देवी सुभद्रा जी के लिए मंदिर के द्वार एकादशी पर खोले जाते हैं. प्रतिमाओं को यहां लाने के बाद स्नान कराया जाता है और विधि के तहत पूजा-पाठ किया जाता है.