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बच्चों को छुए बगैर होगी पीलिया की जांच

Desk by Desk
08/08/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, फैशन/शैली, राष्ट्रीय, स्वास्थ्य
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पीलिया की जांच

पीलिया की जांच

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लाइफस्टाइल डेस्क। लिवर की कमजोरी की वजह से होने वाला पीलिया(Jaundice) की जांच के लिए एक नई तकनीक विकसित की गई है। इसके जरिए नवजात शिशुओं को छुए बगैर महज सात सेकेंड में इसकी जांच हो सकेगी। इसमें ब्लड टेस्ट यानी खून की जांच की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। नवजात शिशुओं में पीलिया का खतरा 60 फीसदी तक रहता है, जबकि प्री-मैच्योर्ड डिलीवरी यानी समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में यह खतरा 70 फीसदी तक रहता है। दरअसल एक ऐसा उपकरण विकसित किया गया है, जो शिशु के नाखून पर प्रकाश की विशेष किरणें डालकर उसके ब्लड में बिलीरुबिन का स्तर बता देता है। इससे पता चल जाता है कि शिशु को पीलिया है या नहीं।

क्या है पीलिया और बिलीरुबिन क्या होता है?

लिवर शरीर का महत्वपूर्ण अंग है, जो कई शारीरिक और रासायनिक प्रक्रियाओं में शामिल होता है। यह शरीर में बनें जहरीले अपशिष्ट पदार्थों को कम हानिकारक तत्वों में बदलता है ताकि वे सुरक्षित तरीके से शरीर से बाहर निकाले जा सकें। इन्हीं अपशिष्ट पदार्थों में से एक है- बिलीरुबिन, जो पुराने हीमोग्लोबिन के अपघटन के दौरान बनता है। इसका रंग पीला होता है। लिवर इसे पित्तरस के साथ पाचनतंत्र तक पहुंचाता है। यहां से मल के रास्ते यह शरीर से बाहर होता है। लिवर के कमजोर होने पर यह प्रक्रिया बाधित होती है और बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ती जाती है। इस वजह से आंखों, त्वचा और नाखूनों में पीलापन दिखने लगता है। यही स्थिति पीलिया कहलाती है।

कोलकाता स्थित एसएन बोस नेशनल सेंटर फार बेसिक साइंसेज (SNBNCBS) के शोधकर्ता प्रोफेसर समीर के. पॉल की टीम ने इस उपकरण को विकसित किया है, जो स्पेक्ट्रोमेट्री तकनीक पर आधारित है। इस उपकरण से निकलने वाली रोशनी बच्चे के नाखूनों से होकर वापस लौटती है और मात्र तीन सेकेंड के अंदर ब्लड में बिलीरुबिन का स्तर बता देती है।

इस परियोजना में प्रोफेसर पॉल के सहकर्मी और एनआरएस मेडिकल कालेज, कोलकाता के शिशु रोग विशेषज्ञ असीम कुमार मलिक के मुताबिक, इस एजेओ-नियो उपकरण के सटीक परिणाम आ रहे हैं। इन्हीं नतीजों के आधार पर हम बच्चों में पीलिया की जांच के बाद उनका आगे का उपचार कर रहे हैं।

अबतक कैसे होती है जांच?

अबतक पीलिया की जांच के लिए एक टोटल सीरम बिलीरुबिन टेस्ट होता है, जिसमें ब्लड सैंपल लेने के बाद रिपोर्ट आने में चार घंटे लग जाते हैं। वहीं, नवजात शिशु में हर 16 घंटे के बाद जांच दुहरानी पड़ती है, ताकि उपचार से होने वाले प्रभाव का पता चल सके। ऐसे में बार-बार ब्लड टेस्ट करना पड़ता है।

नई तकनीक के फायदे

इस नए उपकरण से शिशुओं की दर्दरहित जांच हो सकेगी। नई तकनीक में ब्लड सैंपल की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। इसमें समय की भी बचत होती है। यहां तक कि शिशु को छूने की भी जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे में किसी भी तरह के संक्रमण का खतरा भी नहीं होगा।

बाजार में कबतक उपलब्ध होगा?

इस तकनीक के बाजार में आने का बड़ा फायदा क्लिनिकों और नर्सिंग होम में शिशुओं की पीलिया जांच करने में होगा, जहां पर ब्लड टेस्ट की सुविधा नहीं होती। राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास निगम (एनआरडीसी) ने हाल ही में इस तकनीक को विजयवाड़ा की एक कंपनी को हस्तांतरित किया है। कंपनी का दावा है कि जल्द यह उपकरण बाजार में होगा।

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