भारतीय संस्कृति में संतान की मंगल कामना से सम्बंधित पावन पर्वों की कड़ी में जीवित्पुत्रिका व्रत प्राचीन समय से मनाया जाता है। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 29 सितंबर, बुधवार को है। इसमें विधि-विधान से कुश का जीमूतवाहन बनाकर मां दुर्गा की पूजा की जाती है। अष्टमी को पूरा दिन व्रत रखकर सायंकाल में अच्छी तरह से स्नान किया जाता है और पूजा की सारी सामग्री सजाकर जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।
इस व्रत के संबंध में भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था कि यह व्रत संतान की सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो जिमूतवाहन से जुड़ी है। सत्य युग में गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जिनका नाम जिमूतवाहन था। वे सद् आचरण, सत्यवादी, बडे उदार और परोपकारी थे।
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जिमूतवाहन को राजसिंहासन पर बिठाकर उनके पिता वन में वानप्रस्थी का जीवन बिताने चले गए। जिमूतवाहन का राज-पाट में मन नहीं लगता था। वे राज-पाट की जिम्मेदारी अपने भाइयों को सौंप पिता की सेवा करने के उद्देश्य से वन में चल दिए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या के साथ हो गया।
वन में भ्रमण करते हुए जब एक दिन वे काफी आगे चले गए, तो एक वृद्धा को रोते हुए देखा। उनका हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने वृद्धा से उसके रोने का कारण पूछा तो उसने बताया- मैं नागवंश की स्त्री हूं। मुझे एक ही पुत्र है। नागों ने पक्षीराज गरुड़ को भोजन केे लिए प्रतिदिन एक नाग देने की प्रतिज्ञा की है। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बलि का दिन है।
जिमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा- डरो मत, मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज तुम्हारे पुत्र की जगह स्वयं को लाल कपडों से ढक कर शिला पर लेटूंगा। जिमूतवाहन ने शंखचूड़ के हाथ से लाल कपड़ा ले लिया और उसे लपेट कर निश्चित शिला पर लेट गए।
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गरूड़ जी आए और लाल कपड़े में लिपटे जिमूतवाहन को पंजे से पकड़ कर पहाड़ के शिखर पर जा बैठे। इस बीच अपनी पकड़ में आए प्राणी की आंखों में आंसू देख कर गरुड़ जी आश्चर्य में पड़ गए। उससे परिचय पूछा, तो जिमूतवाहन ने सारी कथा सुना दी।
गरुड़ जी उनकी बहादुरी और दूसरों की प्राण रक्षा के लिए खुद को बलिदान करने की भावना से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने जीमूतवाहन को जीवनदान दे दिया और नागों की बलि ना लेने का वचन भी दिया। जिमूतवाहन के त्याग और साहस से नाग जाति की रक्षा हुई। तभी से संतान की सुरक्षा और सुख के लिए जीमूतवाहन की पूजा की शुरुआत हो गई। यह व्रत कठिन तो है, पर बहुत फलदायी भी है। इस व्रत को जिउतिया के नाम से भी जाना जाता है।