नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर चुनाव के बाद होने वाले सरकार गठन से पहले ही जनता और राजनीतिक दलों को सरकार का अहसास। माना जा रहा है कि नव नियुक्त उप राज्यपाल मनोज सिन्हा लगभग एक दर्जन राजनीतिक सलाहकार नियुक्त करेंगे। रोचक यह है कि इसके लिए वह पीडीपी, नेशनल कांफ्रेस समेत राज्य में सक्रिय सभी दलों से उनके लोगों की मांग कर सकते हैं। कहने को वह उपराज्यपाल के राजनीतिक सलाहकार होंगे, लेकिन काम पूरी तरह से एक मंत्रीमंडल के रूप में करेंगे, जिनमें सभी सलाहकार अपने-अपने विभागों की जिम्मेदारी संभालेंगे।
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विधानसभा चुनाव के लिए भी अनुकूल माहौल तैयार नहीं हो सकेगा। नए रूप रंग में सलाहकारों की नियुक्ति की कोशिश को इसी रूप में देखा जा रहा है। दरअसल यह प्रयोग न सिर्फ उपराज्यपाल को केंद्र सरकार या भाजपा के प्रतिनिधि होने के इमेज से बाहर निकालेगा। बल्कि जनता और राजनीतिक दलों के बीच भी विश्वास पैदा हो सकता है। कौन कौन से राजनीतिक दल इसके लिए तैयार होते हैं यह वक्त बताएगा लेकिन यह एक अवसर होगा।
राजनीतिक सलाहकार लंबे समय से आंतकवाद और कुप्रबंधन के शिकार रहे जम्मू-कश्मीर के लिए यह काफी नहीं है। वैसे भी पीडीपी, एनसी और काफी हद तक कांग्रेस के पंचायत चुनावों के बहिष्कार के कारण पंचों, सरपंचों और बीडीसी प्रमुखों को भाजपा के प्रतिनिधि के रूप में ज्यादा देखा जा रहा है। इसके साथ ही पंच और सरपंच सरकार के साथ जनता के बीच जुड़ाव की कड़ी बनने में अभी तक कामयाब नहीं हो पाए हैं।
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इन सलाहकारों को तत्काल हटाने की कोई योजना नहीं है। लेकिन नए राजनीतिक सलाहकारों की नियुक्ति के बाद आम आदमी से जुड़े विभागों की जिम्मदारी से इन्हें मुक्त कर इनकी भूमिका प्रशासन और सुरक्षा जैसे मुद्दों तक सीमित किया जा सकता है।