चौधरी अजित सिंह की गिनती पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेताओं में होती थी। बड़े जाट नेताओं में गिने जाने वाले अजित सिंह की पहचान किसान नेता के तौर पर थी। ’किसान नेता’ की पहचान के लिए भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत से उनकी सियासी अदावत रही। एक-दो बार मिलने के बाद भी दोनों नेताओं की कभी जुगलबंदी नहीं बन पाई।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की मांगों को भारतीय किसान यूनियन और रालोद नेता लगातार उठाते रहे। भाकियू संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने तो किसानों के मामलों को लेकर लंबे आंदोलन चलाए। मुजफ्फरनगर का करमू खेड़ी आंदोलन, मेरठ के कमिश्नरी पार्क पर भाकियू का धरना ऐतिहासिक आंदोलनों में शुमार है। अजित सिंह के पिता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पहचान दिग्गज किसान नेता के रूप में रही। उनकी किसान नेता की छवि को अपनाने के लिए रालोद मुखिया लगातार किसानों की मांग को उठाते रहे।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इसी ’किसान नेता’ की पहचान के लिए छोटे चौधरी की हमेशा महेंद्र सिंह टिकैत से सियासी अदावत रही। वैसे दोनों नेताओं ने एकबार भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन करके चुनाव भी लड़ा, लेकिन कुछ समय बाद ही दोनों का आपस में मोहभंग हो गया। 1998 में बागपत से चुनावी हार के लिए अजित सिंह ने टिकैत को ही जिम्मेदार माना था।
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अजित को मंच पर नहीं चढ़ने दिया था
अपने आंदोलन में महेंद्र सिंह टिकैत ने राजनेताओं को अपने मंच पर नहीं चढ़ने दिया। एकबार टिकैत ने अजित सिंह और उनकी माता गायत्री देवी को भी हाथ जोड़कर मंच पर नहीं चढ़ने दिया था। इसके बाद से दोनों नेताओं में सियासी जुगलबंदी नहीं बन पाई।
2014 में राकेश टिकैत ने रालोद से लड़ा चुनाव
2014 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने टिकैत परिवार से खटास दूर करने की कोशिश की। अमरोहा लोकसभा सीट से रालोद के टिकट पर भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत को चुनाव लड़ाया। हालांकि राकेश टिकैत को यहां करारी हार का सामना करना पड़ा।
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किसान आंदोलन से फिर मंच पर आए
केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन से भाकियू और रालोद नेता फिर से एक मंच पर आए। मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत के मंच पर भाकियू नेता नरेश टिकैत और रालोद नेता जयंत चौधरी एकसाथ पहुंचे और आपसी गिले-शिकवे दूर करने की कोशिश की। नरेश टिकैत ने तो मंच से कहा कि अजित सिंह को 2019 का लोकसभा चुनाव हराकर बहुत बड़ी गलती कर दी।