वैक्सीन के पहले डोज से आपको सीमित सुरक्षा मिलती है, जबकि दूसरे डोज से संपूर्ण सुरक्षा मिलती है। पहली डोज की आंशिक इम्युनिटी एक समय के बाद खत्म हो जाती है। वैक्सीन का दूसरा डोज ही वास्तविक तौरपर कोरोना विषाणु के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता है। पर दूसरे डोज के असर की भी एक सीमा है। कितनी है? इस बावत अमेरिकी चिकित्सा विज्ञानी कहते हैं, अधिकतर मामलों में यह छह महीने मानी जा सकती है। कुछ वैक्सीन आठ से नौ महीने तक भी अपना असर बरकरार रख सकती हैं। यह वैक्सीन की तकनीक, प्रणाली और कोरोना वायरस के नये वैरिएंट की घातकता पर निर्भर है। एक शोध बताता है कि जो कोरोना संक्रमित होकर प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त कर नेचुरल इम्युनिटी पा चुके हैं, उनकी यह ताकत आठ महीने तक चल सकती है। हालांकि उन्हें भी कोरोना होते देखा जा चुका है, भले ही वह पहले से अलग वेरिएंट से हो। ऐसे में कई वैरिएंट पर प्रभावी बूस्टर तो चाहिये ही। इसलिये विशेषज्ञ अभी भी इस सवाल का जवाब तलाश रहे हैं कि वास्तव में किस तरह के बूस्टर शॉट की जरूरत कब पड़ेगी।
मैसेंजर आरएनए वैक्सीन थोड़ा ज्यादा समय तक चलेगी जरूर पर शायद छह से 12 महीने तक ही। वैज्ञानिक तो यहां तक कहते हैं कि बूस्टर की जरूरत छह महीने पर भी पड़ सकती हैं। यह वायरस के नये म्यूटेशन और मौजूद वैक्सीन पर उसके प्रभाव पर निर्भर है। मोटे तौर पर यह तय माना जाना चाहिये कि दूसरी डोज के ठीक एक साल बाद बूस्टर डोज बहुत जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीजों और बुजुर्गों को दूसरे डोज के बाद साल से पहले ही बूस्टर डोज लेना अनिवार्य होगा। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैज्ञानिक वैक्सीन के प्रभाव व वैरिएंट्स की घातकता के अनुसार वैक्सीनेशन और बूस्टर प्रोग्राम में बदलाव कैसे किया जाये इसका अध्ययन कर रहे हैं।
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हालांकि सवाल यह भी है कि बूस्टर के क्लीनिकल ट्रायल को कितना समय मिलेगा और उसके आंकड़े कितने सही होंगे। पर यह सबको पता है कि बूस्टर ही बचाव का एकमात्र तरीका है। दवा कंपनियों को बूस्टर जल्द लाने में अपना स्वार्थ है, वे प्रचारित करेंगी कि मौजूदा वैक्सीन की सुरक्षा बहुत निम्न स्तरीय है। फर्मा सेक्टर इस तथ्य को ध्यान में रखकर बूस्टर बना रहे हैं कि वह ब्राजील, साउथ अफ्रीका, ब्रिटेन, इंडिया यानी हर तरह के वैरिएंट को कवर करे। उधर यूरोपीय संघ के देशों ने 2023 की अपनी आवश्यकता का अनुमान लगाकर अभी से बूस्टर डोज का आर्डर फाइजर बायोनटेक को दे दिया है, फाइजर का कहना है कि साल की आखिरी तिमाही में वह 5 करोड़ खुराकें मुहैय्या करा देगा। इस तत्परता का कारण यह है कि वह एस्ट्रोजेनका को इस मामले में पीछे छोड़ना चाहता है।
जाहिर है बूस्टर की बहुत जबरदस्त व्यावसायिक होड़ शुरू होने वाली है। बूस्टर का बाजार बहुत बड़ा है और बूस्ट होने वाला है। इसी साल बूस्टर का बिजनेस 26 अरब डालर का होगा, 2025 तक अकेले अमरीका में 157 अरब डॉलर के बूस्टर बिकेंगे। बहुत सी सरकारें बूस्टर को लेकर बातचीत कर रही हैं। क्या हमारी सरकार भी कोरोना वैक्सीन की तीसरी खुराक या बूस्टर को लेकर उतनी ही चिंतित और तत्पर है? हम अभी पहली डोज में ही उलझे हैं। तीसरी डोज और तीसरी लहर की तैयारी अभी दूर है। देश में 16 जनवरी 2021 से वैक्सीनेशन आरंभ हुआ था, इसका मतलब यह है कि 15 जनवरी 2022 से वैक्सीन का बूस्टर डोज देने शुरु करने चाहिये। तब हमारे पास फ्रंट लाइन वर्कर, गुर्दे, हृदय, कैंसर, गंभीर मधुमेह या अन्य भीषण बीमारियों से ग्रस्त लोगों के साथ 60 से ऊपरवाले बुजुर्गों की भारी भीड़ सामने होगी।
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दो डोज लगवा चुके लोग बस हो चुका न मान बैठें उन्हें जागरूक करना होगा कि वे बूस्टर डोज लगवाएं ताकि कोरोना के तात्कालिक वैरिएंट के विरुद्ध इम्युनिटी बनी रहे, वरना वे खुद किसी कोरोना फैक्ट्री से कम नहीं होंगे। इनमें से बहुत से इस दौरान सुपर स्प्रेडर बने घूम रहे होंगे। गफलत में हजारों को शिकार बनाएंगे जिसका प्रभाव तीसरी लहर के बाद उभरेगा। सरकार के इतनी मेहनत से की गई वैक्सीन अभियान को ध्वस्त करने के कारण बनेंगे। तो एक तरफ यह जागरूकता फैलाना जरूरी होगा तो दूसरी तरफ उन्हें देशहित में बूस्टर डोज लेने के लिये प्रेरित क्या बाध्य करना होगा। हमें तीसरी खुराक अगले साल जनवरी से शुरू करनी है। इस बीच हमें आशंकित तीसरी लहर की तैयारी करनी है, उसे झेलना है। इसके चलते और इस दौरान धीमे टीकाकरण अभियान के चलते हम अगले साल मार्च तक देश की चैथाई जनसंख्या को ही दोनों डोज लगा सकेंगे। यह भी कठिन जान पड़ता है। हमें तीसरे डोज के बारे में अभी से सोचना और रणनीति बनानी होगी, क्योंकि अभी सोचेंगे रणनीति बनायेंगे तभी छह महीने बाद इस स्थिति में होंगे कि लोगों को बूस्टर डोज दे सकें।
इजराइल, अमेरिका, ब्रिटेन या फिर कम जनसंख्या वाले देश तो समय से अपनी तीसरी डोज आरंभ कर सकते हैं। वे अपनी 90 फीसदी वैक्सीन योग्य जनसंख्या को वैक्सीन लगाने के बाद बूस्टर का नया दौर आरंभ कर सकते हैं। पर हम यह कैसे और कब करेंगे यह यक्ष प्रश्न है। इस समय तक बहुत से लोग अपनी पहली डोज ले रहे होंगे कुछ लोग दूसरी डोज और करोड़ों लोग अपने तीसरी डोज या बूस्टर की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे होंगे। बूस्टर डोज सिंगल होगा पर फिर भी देश को पहले फेज में कम से कम सात आठ करोड बूस्टर डोज की आवश्यकता होगी। पिछली बार कुछ खुशफहमी कुछ लापरवाही और कुछ चुनावी व्यस्तता और थोड़ी अदूरदर्शिता के चलते सरकार समय पर उचित मात्रा में वैक्सीन का आर्डर नहीं कर पाई। राज्यों को ग्लोबल टेंडर लाने पड़े। विदेशी मीडिया, विपक्षी दलों के उसे ताने सुनने पड़े। देश में हजारों वैक्सीन सेंटर बंद करने पड़े। 18 पार वालों का टीका रोकने की नौबत आ गई। सवाल यह कि हम पिछली बार वाली सुस्ती तो नहीं दुहरायेंगे, क्या हमारे पास पर्याप्त बूस्टर डोज के उपलब्धता और इन्हें लगाने का भी इंतजाम सुचारु होगा। वैक्सीन के मामले में चूक हुई पर अब बूस्टर के मामले में जिसके बारे में सब पहले से स्पष्ट है, हमारा चूकना महाघातक हो सकता है।