माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के लिए 1953 के अभियान के अंतिम जीवित सदस्य कंछा शेरपा (Kancha Sherpa) का गुरुवार, 16 अक्टूबर को निधन हो गया। उन्होंने नेपाल की राजधानी काठमांडू के कापन स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली। वह 1953 में माउंट एवरेस्ट के आखिरी कैंप तक पहुंचने वाली टीम के अंतिम जीवित सदस्य थे। नेपाल माउंटेनियरिंग एसोसिएशन (Nepal Mountaineering Association) ने उन्हें ऐतिहासिक और महान व्यक्तित्व का टाइटल दिया है।
कांचा (Kancha Sherpa) के पोते तेनजिंग चोयगल शेर्पा ने बताया कि उन्हें हाल के दिनों में गले की कुछ समस्या थी, लेकिन उम्र के लिहाज से वे किसी बड़ी बीमारी से पीड़ित नहीं थे।
सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे शेरपा (Sir Edmund Hillary and Tenzing Norgay Sherpa) को शिखर तक पहुंचने में कंचा शेरपा (Kancha Sherpa) द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में भी बताया। हाल ही में पेट के कैंसर के इलाज के लिए उनके पैतृक गाँव नामचे बाज़ार , जो एवरेस्ट का प्रवेश द्वार है, से नेपाल की राजधानी लाया गया था।
1933 में नेपाल के नमचे गांव में जन्मे कांचा शेर्पा ने अपना बचपन और जवानी तिब्बत में गुजारी, जहां वह आलू का व्यापार करते थे। इसके बाद में वे दार्जिलिंग गए, जहां पर्वतारोहण की ट्रेनिंग लेकर Foreign mountaineers के साथ काम करना शुरू किया।
उनके पिता और तेनजिंग नोर्गे की दोस्ती की वजह से कांचा (Kancha Sherpa) को एवरेस्ट अभियान में High-Altitude Porter के रूप में काम मिला। उन्होंने 1953 के बाद भी दो दशक तक Himalayan expeditions में हिस्सा लिया, लेकिन बाद में पत्नी के कहने पर उन्होंने खतरनाक यात्राएं छोड़ दीं।