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कनौजी ददुआ की बतकही

स्तम्भ (भाग-1)

कन्नौजी का नाम लेते ही कान्यकुब्ज की एक विस्तृत संकल्पना जेहन में उभरती है। जिसमे घाघ हैं, भड्डरी है , हर्षवर्धन हैं। पावन गंगा की अविरल धारा का कल कल निनाद है।  बलखाती रामगंगा और शांत प्रवाहित इच्छुमती नदी का पांचाल क्षेत्र में कन्नौजी या यूं कहे सूरसैनी का स्वर गुंजित है । यहाँ पूरब में अवधी, पश्चिम में ब्रज उत्तर में रुहेली और दक्षिण में बुंदेली से घिरी कन्नौजी हिंदी की अनुषंगी बोली भाषा है ।

कन्नौजी में जहां ब्रज का माधुर्य है तो अवधी की सहजता ,रोहली का अल्हड़पन और बुंदेली का ओज सह खरापन इसकी विशेषता है। यहाँ कनौजी के साहित्यकारों में आदि कवि के रुप में घाघ कवि उल्लेखनीय हैं । इसी श्रृंखला में भड्डरी, ठुमरी गायक पंडित ललन पिया, बिल्ललेले , राजा खद्दीपुर के राजकवि पंडित वचनेश मिश्र इत्यादि कोविद नक्षत्र हैं। भक्तिकाल से ही कन्नौजी के प्रति उदासीनता ने साहित्य में अगली पीढ़ी के लिए मार्ग प्रशस्त नहीं किया । यह विडंबना ही है कि महान साहित्यकारों द्वारा आरम्भ की गयी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए  समकालीन पीढ़ी ने न तो उत्साह ही दिखाया और न किसी को प्रोत्साहन दिया ।

यूँ तो आज भी इसी परम्परा में कई सृजनकारों का नाम उल्लेखनीय हैं । हम इस स्तंभ के माध्यम से उन प्रतिभाओं को आपके सामने लाने का सत् प्रयास करेंगे और  इस परंपरा में आने वाली दुश्वारियों पर विहंगम दृष्टि डालेंगे , साथ ही इस उदासीनता के कारणों पर भी विवेचन करने का प्रयास करेंगे । कोई भी राष्ट्रभाषा बिना स्थानीय बोलिओं के समृद्ध हुए अपने शिखर पर नहीं पहुँच सकती है ।

उत्तर प्रदेश में हिंदी की छह सहायक बोलियाँ हैं यथा कौरवी ,ब्रज, अवधी, कन्नौजी या सूरसैनी, बुंदेली भोजपुरी वस्तुत: हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए उत्तर प्रदेश में ब्रज अवधी , बुंदेली और भोजपुरी में बहुत सार्थक प्रयास किए गए,  किंतु कन्नौजी द्वारा समुचित योगदान न दिया जाना सोचनीय प्रतीत होता है । यह पीड़ा सभी साहित्यकारों को आत्मसात करना चाहिए और खड़ी बोली के साथ ही अपनी मातृभाषा बोली कन्नौजी में भी सार्थक सृजन की दिशा की ओर प्रयास किया जाना नितांत आवश्यकता है ।

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हिंदी साहित्य की तरह ही कन्नौजी में भी कहानी, लघुकथा ,समकालीन कविताएं ,गीत, निबंध आलोचनात्मक लेख और काव्य रचनाओं का सृजन सहजता से किया जा सकता है।  आपका सार्थक और सतत प्रयास कन्नौजी को सम्मानित स्थान दिलाने सराहनीय भूमिका स्थापित कर सकेगा।

कन्नौजी रसरंग के कलम आपके संग…..

ठेठ कनौजी

हम ठेठ कनौजी ददुआ हैं

हम रामगंग नद कारी हैं

हम सुरसरि के आभारी हैं

कटरी में अपने ठाटबाट

हम श्रृंगी कंपिल पांचाल घाट

यंह साक्यांश पाण्डेश्वर अविनाशी

हम माकंदी अहिच्छत्र अपराकाशी

हमक्षेमकली और फूलमती

हम घटियाघाट मोक्षगती

हम राजनीति की चौसर संग,

मठा के आलू कदुआ हैं।।

हम ठेठ कनौजी ददुआ हैं।

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