हिंदू धर्म में छोटी बच्चियों को देवी का स्वरूप माना जाता है। यही कारण है कि शारदीय नवरात्रि पर्व के आखिर में कन्या भोज (Kanya Puja) की परंपरा है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, दुर्गा अष्टमी पर्व 22 अक्टूबर को मनाया जाएगा और इस दिन कन्या भोज कराया जाएगा। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, यदि आप भी अष्टमी या नवमी तिथि को कन्या भोज कराना चाहते हैं तो इस बात का ध्यान रखें को 10 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों को ही न्योता दें। धार्मिक मान्यता के मुताबिक 10 वर्ष तक की बच्चियों में देवी के अलग-अलग स्वरूप होता है। यही कारण है कि 2 से 10 वर्ष तक की बच्चियों को विशेष रूप में कन्या भोज (Kanya Puja) के दौरान पूजा जाता है।
जानें किस उम्र की बच्ची कौन सी देवी का है स्वरूप
2 वर्ष तक की बच्ची
पौराणिक मान्यता के अनुसार 2 साल तक की कन्याओं को मां कुंआरी का रूप माना जाता है। इनकी पूजा करने से आर्थिक तंगी दूर होती है। धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
2 से 3 साल की बच्ची
इस उम्र की बच्चियों को देवी त्रिमूर्ति का रूप माना जाता है। कन्या पूजन के दौरान 2 से 3 साल की बच्चियों को भोज कराने से जीवन में सकारात्मकता आती है।
3 से 4 साल की कन्या
3 से 4 वर्ष की कन्याओं में देवी कल्याणी का रूप होता है। इस उम्र की कन्याओं की पूजा करने से जीवन सुखमय होता है।
4 से 5 साल की कन्या का पूजन
इन उम्र की पूजा करने से देवी रोहिणी प्रसन्न होती है। इससे स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है। परिवार के सभी सदस्य सेहतमंद रहते हैं।
5 से 6 साल बच्ची मां कालिका का रूप
पौराणिक मान्यता है कि 5 से 6 साल की बच्ची मां कालिका का रूप होती है। मां कालिका को देवी शक्ति और विजय का प्रतीक मानी जाती है। इनकी पूजा करने से विजय की प्राप्ति होती है।
6 से 7 साल की कन्या
इस उम्र की कन्याओं को मां चंडिका का रूप माना जाता है। मां चंडिका की पूजा करने से विजय, धन, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जीवन में सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है।
7 से 8 साल
इस उम्र की बच्चियों में देवी शांभवी का स्वरूप होता है। इनकी पूजा करने से कोर्ट कचहरी या वाद विवाद से जुड़े मामलों में सफलता प्राप्त होती है। शत्रु पर विजय प्राप्ति होती है।
8 से 9 वर्ष तक की कन्या
इन बच्चियों को साक्षात मां दुर्गा का रूप माना जाता है। इनकी पूजा करने से शत्रु पराजित होते हैं और सफलता प्राप्त होती है। कानूनी विवाद में सफलता मिलती है।
9 से 10 वर्ष
इन कन्याओं को देवी सुभद्रा का स्वरूप मानकर पूजा करनी चाहिए। इससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
अलग-अलग परंपरा व मान्यताएं
गौरतलब है कि कन्या पूजन (Kanya Puja) को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों में कई प्रथाएं व परंपराएं प्रचलित हैं। ऐसे में कन्या पूजन की उम्र को लेकर भी कई भिन्नताएं देखने को मिलती है। उत्तर भारत में जहां कन्या भोज (Kanya Puja) के लिए 10 वर्ष तक की बच्चियों का पूजन किया जाता है, वहीं इस संबंध में दक्षिण भारतीय राज्यों में कुछ अलग मान्यताएं देखने को मिलती है।