जब भी सूर्य एक राशि से दूसरे राशि में जाता है, तो इसे संक्रांति कहते हैं। सूर्य हर महीने राशि परिवर्तन करता है और इसलिए साल में कुल 12 संक्रातियां आती हैं। हिन्दू धर्म में संक्रांति के दिन को बहुत पुण्यकारी माना गया है। इस दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफी महत्व है। सभी बारह संक्रांतियां दान-पुण्य के लिए अत्यधिक शुभ मानी जाती हैं। कन्या संक्रांति (Kanya Sankranti) को भारतीय हिंदू कैलेंडर के अनुसार छठवें महीने की शुरुआत में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य, सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है और इसीलिये इसे कन्या संक्राति कहा जाता है। इस साल कन्या संक्रांति (Kanya Sankranti) 17 सितंबर को पड़ रही है।
कन्या संक्राति (Kanya Sankranti) का महत्व
कन्या संक्रांति (Kanya Sankranti) पर पितरों को किये जाने वाला अनुष्ठान का विशेष महत्व है। इस दिन अपने पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण, पूजा-अनुष्ठान आदि करने से पितृदोष दूर होते हैं और पितरों का आत्मा को शांति मिलती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से भी सभी पाप धुल जाते हैं।
अगर किसी नदी में स्नान करना संभव ना हो, तो नहाने के पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाकर स्नान करें। कन्या संक्रांति (Kanya Sankranti) के दिन विश्वकर्मा पूजा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। तो वहीं दूसरी तरफ दक्षिण भारत में संक्रांति को संक्रानम कहा जाता है।
विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja)
कन्या संक्राति (Kanya Sankranti) के दिन यानी 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा (Vishwakarma Puja) का जन्मदिवस भी मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र विश्वकर्मा ही सृष्टि के पहला वास्तुकार, शिल्पकार और इंजीनियर थे। उन्होंने ही इस सृष्टि को सजाने और संवारने का काम किया था।
उत्तर भारत के राज्यों के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, बंगाल, बिहार और उड़ीसा में विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) का धूमधाम से आयोजन किया जाता है। इस दिन लोग अपने वाहन, फैक्ट्री और घर के औजारों की विधिवत पूजा करते हैं। सभी प्रकार के कारीगर, उद्योग, स्कूल, दुकान, मशीन आदि से जुड़े लोग विश्वकर्मा भगवान की पूजा करते हैं। इस दौरान आप घर पर मांगलिक कार्यक्रम भी कर सकते हैं।