नई दिल्ली. कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने 16 जुलाई को दिल्ली पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। अचानक हुई इस मुलाकात ने येदियुरप्पा के इस्तीफे की अटकलों को हवा दे दी है।
सूत्रों की मानें तो येदियुरप्पा ने खुद ही इस्तीफे की पेशकश की है, लेकिन इस पेशकश के साथ एक शिकायत भी की है। दरअसल, दिल्ली की राजनीति में सक्रिय कर्नाटक के कुछ नेता येदियुरप्पा की कैबिनेट में कुछ लोगों को लगातार सक्रिय रखने में खास भूमिका निभा रहे हैं। ये लोग येदियुरप्पा को लगातार निशाने पर रखते हैं।
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सूत्रों के मुताबिक दिल्ली के नेताओं ने येदियुरप्पा को फिलहाल थोड़े समय और पद पर बने रहने का भरोसा दिया है, लेकिन येदियुरप्पा अपनी खुशी ज्यादा दिन बरकरार नहीं रख पाएंगे।
बता दें कि CM येदियुरप्पा शनिवार को गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मिले। फिर उनके स्वर बदल गए उन्होंने साफ कहा, ‘अभी इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता। शुक्रवार को मैंने प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की थी और हमने राज्य के विकास पर विस्तृत रूप से चर्चा की।’
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राज्यपाल का पद ठुकराया
वहीं सूत्रों की माने तो येदियुरप्पा को पश्चिम बंगाल में गवर्नर का पद भी ऑफर किया गया, लेकिन येदियुरप्पा ने प्रधानमंत्री मोदी से साफ कहा कि आप चाहें तो इस्तीफा ले लें, लेकिन पश्चिम बंगाल में गवर्नर का पद स्वीकार्य नहीं है।
दरअसल, येदियुरप्पा कर्नाटक की राजनीति से तब तक रिटायरमेंट नहीं चाहते, जब तक वे अपने बेटे को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित न करवा लें।
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भाजपा के पास कर्नाटक में येदियुरप्पा का विकल्प नहीं
कर्नाटक में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। सवाल ये है कि मार्गदर्शक की उम्र में येदि को भाजपा CM क्यों बनाए हुए है? दरअसल, 78 वर्षीय येदियुरप्पा का विकल्प फिलहाल भाजपा के पास मौजूद नहीं है। येदि लिंगायत जाति के कद्दावर नेता हैं। वे कर्नाटक की राजनीति के धुरंधर हैं। फिलहाल उनके कद का नेता कांग्रेस या अन्य किसी पार्टी के पास भी नहीं है। लिहाजा अगर भाजपा उन्हें पद से हटाकर किसी और को मुख्यमंत्री बनाती है तो भी येदियुरप्पा के समर्थन की जरूरत होगी। अगर येदियुरप्पा भाजपा से कन्नी काटते हैं, तो राज्य में इसका नुकसान भी भाजपा को उठाना पड़ सकता है।