कोरोना वायरस देश ही नहीं दुनिया में महामारी बन चुका है तो दुनिया भर में स्कूली शिक्षा के भविष्य और इस सत्र को लेकर योजनाएं बन रही हैं। भारत में भी कई राज्यों में सिलेबस में कटाई छंटाई की जा रही है क्योंकि 220 कार्य दिनों का शैक्षणिक सत्र अब छोटा रह गया है, जैसे कर्नाटक में सिर्फ 120 दिनों का ही किया जा रहा है।
कर्नाटक सरकार द्वारा प्रायोजित टीपू जयंती कार्यक्रम को बंद करने के राज्य सरकार के फैसले पर पहले ही विवाद हो चुका है। अब कर्नाटक सरकार ने मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान से जुड़ा अध्याय स्कूली पाठ्यक्रम से हटाने का फैसला किया है।
जब विरोध किया गया तो उठे भाजपा सरकार ने इस फैसले को होल्ड पर रख दिया। कर्नाटक की राजनीति में कई बार चर्चा में आने वाले टीपू सुल्तान इस बार शिक्षा व्यवस्था से जुड़कर चर्चा में हैं।
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18वीं सदी के वीर शासक के तौर पर पहचाने जाने वाले टीपू बार बार कर्नाटक में क्यों विवादों में आ जाते हैं। कर्नाटक में 7वीं कक्षा के सिलेबस से टीपू सुल्तान और उनके पिता हैदर अली के अध्याय इसलिए हटाए गए हैं ताकि सिलेबस में 30 फीसदी की कटौती की जा सके।
शिक्षा विभाग ने कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के चलते 2020-21 अकादमिक साल में बस्ते का बोझ हल्का करने के लिए ये फैसले लिये हैं। कक्षा 6 से 10वीं तक के सिलेबस में और भी अध्याय कम किए गए हैं।
जिन अध्यायों को हटाए जाने के फैसले लिये गए हैं, उनमें जीसस क्राइस्ट और पैगंबर मोहम्मद के सबक, मुगलों और राजपूतों के इतिहास, संविधान के आधारभूत सिद्धांतों और विजयनगर व राष्ट्रकूट वंश के इतिहास से जुड़े चैप्टर शामिल हैं। हालांकि सरकार इस पर दोबारा सोच रही है क्योंकि कर्नाटक टेक्स्टबुक सोसायटी की वेबसाइट पर लिखा है कि ‘पहली से दसवीं कक्षा तक जो पाठ्यक्रम कटौती की गई, उसे फिलहाल वापस लिया गया है.’
वहीं शिक्षा विभाग के अधिकारियों के हवाले से खबरें कह रही हैं कि शिक्षा मंत्री के निर्देशों के बाद सिलेबस से जुड़े नये अपडेट कुछ ही दिनों में जारी किए जाएंगे। साथ ही, ये भी कि ये बदलाव सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स की सिफारिशों पर किए गए हैं। टीपू सुल्तान से जुड़े अध्याय कक्षा 6 और 10 में पढ़ाए जा रहे हैं।
राज्य में टीपू सुल्तान दो वर्गों की लड़ाई में घिर चुके हैं। एक कहता है कि टीपू अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़े थे इसलिए देशभक्त थे, तो दूसरा यानी दक्षिणपंथी खेमा टीपू को हज़ारों हिंदुओं की हत्या का ज़िम्मेदार ठहराते हुए उन्हें क्रूर और अत्याचारी शासक बताता है।
जब राज्य में 2015 में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार थी, तब टीपू जयंती के बड़े कार्यक्रम को सरकार प्रायोजित सालाना कार्यक्रम बनाया गया था। लेकिन येदियुरप्पा की भाजपा सरकार ने 2019 में सरकार को इस कार्यक्रम से अलग करने की घोषणा की थी।
टीपू सुल्तान के वंशज अली के हवाले से द प्रिंट की रिपोर्ट ये भी कहती है कि कोई पार्टी टीपू सुल्तान, हैदर अली या संविधान को मानती है या नहीं, लेकिन ये सब इतिहास के अंग हैं, इसे बदला नहीं जा सकता।