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करवा चौथ में जरूर पढे साहूकार की बेटी वाली व्रत कथा

Karwa Chauth

Karwa Chauth

पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिनें 20 अक्टूबर को निर्जल व्रत (Karwa Chauth) रखेंगी। इस व्रत में शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। इस बार 20 अक्तूबर को चंद्र उदय रात 7.40 बजे होगा, जिसके बाद महिलाएं चांद और पति को चलनी से देखकर जल ग्रहण कर व्रत पूरा करेंगी। इस दिन कार्तिक कृष्ण तृतीया तिथि दिन में 10.46 बजे तक रहेगी, उसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी। इस दिन शाम को शुभ मुहूर्त में कथा सुनकर और मिट्टी के करवे में सीक डालकर चंद्रमा का अर्घ्य दिया जाता है। इस व्रत में साहूकार के सात बेटों और सात बेटियों वाली कथा पढ़ी जाती है। यहां पढ़ें साहूकार के सात बेटों और सात बेटियों वाली कथा-

एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे साहूकारनी के साथ उसकी बहुओं और बेटी ने चौथ का व्रत रखा था। चौथ (Karwa Chauth)  का व्रत में चांद देखकर ही व्रत खोलते है। रात को जब साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोल सकती है और कुछ खा सकती है।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से बहन को दिखाता है, छलनी की ओट में रखा दीपक चांद की तरह लगता है। ऐसे में वो ऐसा लगता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। बहन ने अपनी भाभी से भी कहा कि चंद्रमा निकल आया है व्रत (Karwa Chauth) खोल लें, लेकिन भाभियों ने उसकी बात नहीं मानी और व्रत नहीं खोला।

बहन को अपने भाईयों की चतुराई समझ में नहीं आई और उसे देख कर करवा उसे अर्घ्य देकर खाने का निवाला खा लिया। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है।

उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण माता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर वह निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही।

उसने पूरे साल की चतुर्थी को व्रत किया और अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो जिसके फलस्वरूप करवा माता और गणेश जी के आशीर्वाद से उसका पति पुनः जीवित हो गया। जैसे गणपति और करवा माता ने उसकी सुनी, वैसे सभी की सुनें, सभी का सुहाग अमर हो।

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