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कोकिला व्रत रखने से कुंवारी कन्याओं को मिलता है मनचाहा वर, सुहागनों को मिलता है अखंड सौभाग्य

Kokila Vrat

Kokila Vrat

हिंदू धर्म में कोकिला व्रत (Kokila Vrat) का खास महत्व है। यह आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर रखा जाता है। आषाढ़ मास के पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गुरुओं की पूजा करने का भी विधान है साथ इस दिन शिव और सती की पूजा की जाती है। इस दिन खासकर शिव के साथ सती माता को एक कोयल के रूप में स्थापित किया जाता है, उनको सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

माना जाता है कि इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन की परेशानियां दूर हो जाती है, वहीं कुंवारी कन्याएं अगर इस व्रत को करती हैं तो उन्हें अच्छे वर की प्राप्ति होती है। इस पूजा को विधि विधान से करने से सुख-समृद्धि और परिवार में खुशहाली का वरदान मिलता है।

कोकिला व्रत (Kokila Vrat) का शुभ मुहूर्त

इस बार आषाढ़ पूर्णिमा 10 जुलाई को सुबह 1:26 पर शुरू हो रही है वहीं इसका समापन 11 जुलाई 2025 को सुबह 2:06 पर हो जाएगा।

प्रदोष पूजा का मुहूर्त

कोकिला व्रत (Kokila Vrat) में प्रदोष पूजा का विधान है प्रदोष पूजा का मुहूर्त शाम 7:22 से 9:24 तक रहेगा।

कोकिला व्रत (Kokila Vrat) पूजा की विधि

कोकिला व्रत (Kokila Vrat) पूजा में भगवान शिव और सती की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। शाम के समय स्नान करके पूजा की तैयारी की जाती है। कई इलाकों में इस दिन जड़ी बूटियों से स्नान के परंपरा भी है। इस दिन माता सती की कोयल के रूप में पूजा की जाती है तो उसी रूप में उनको भगवान शिव के संग स्थापित किया जाता है। देवी सती के प्रतीक के रूप में मिट्टी की एक कोयल की मूर्ति बनाई जाती है। उस मूर्ति को विधिपूर्वक सजाया जाता है और साथ ही भगवान शिव को भी स्थापित किया जाता है। भगवान शिव को बेलपत्र, दूध, दही, धतूरा, मौसमी फल चढ़ाएं जाते हैं।

इस दिन भगवान शिव और माता सती का अभिषेक त्रिवेणी जल से किया जाता है। पूजा के बाद भगवान शिव और माता सती की आरती की जाती है। इस व्रत में अनाज का सेवन नहीं किया जाता और इसका पारण अगले दिन किया जाता है।

कोकिला व्रत (Kokila Vrat) का महत्व

मान्यता है कि भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए माता सती ने यह व्रत किया था। जब माता सती अग्नि में भस्म हो गई थीं, उसके बाद उन्होंने कोयल का जन्म लिया था और 10,000 साल तक कोयल के रूप में जंगल में रहकर भगवान शिव की पूजा और अर्चना की थी, जिसके बाद ही उनको पर्वत राज हिमालय के घर पार्वती के रूप में पुनर्जन्म प्राप्त हुआ था।

मान्यता है कि इस दिन किए गए व्रत से सुख और सौभाग्य की वृद्धि होती है। वैवाहिक सुखों में वृद्धि होती है साथ ही कुंवारी कन्याओं को इस व्रत को करने से उनका मनचाहा वर मिलता है।

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