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बिगड़ा रहा है रसोई का बजट, बढ़े चावल और सरसों के तेल के दाम

edible oil

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बाजार में नया आलू आने के बाद से इसकी कीमत काबू में आने लगी है। प्याज के भाव भी कम होने लगे हैं। वहीं, सरसों तेल और चावल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि ने आम आदमी की रसोई का बजट बिगाड़ दिया है। खाने में उपयोग होने वाले सभी खाद्य तेलों मूंगफली, सरसों का तेल, वनस्पती, सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम ऑयल की कीमतें एक बार फिर बढ़ गई हैं।

उपभोक्ता मामलों के मूल्य निगरानी विभाग पर उपलब्ध खाद्य तेल की कीमतों पर नजर डालें तो सभी में बीते दो महीने में तेजी से उछाल आया है। सरसो तेल का अधिकतम कीमत नवंबर महीने में 175 रुपये प्रति लीटर तक था जो 31 दिसंबर को बढ़कर 208 रुपये पहुंच गया। वहीं, जुलाई में न्यूनतम कीमत 90 रुपये था वह नवंबर में बढ़कर 102 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया। सरसों तेल के अलावा दूसरे सभी खाने वाले तेल की कीमत में भी उछाल दर्ज की गई है। इसके साथ ही चावल की कीमत में भी बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

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केडिया एडवाइजरी के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय केडिया ने बताया कि एनसीडीएक्स का एग्री कमोडिटी इस साल की शुरुआत में ही अपर सर्किट लगा है। इसमें करीब 20 फीसदी की तेजी दर्ज की गई है। अपर सर्किट लगाने में जौ, चना, कपास का तेल, सरसों का बीज, सोया तेल, सोयाबीन और हल्दी की अहम भूमिका है। इसकी एक और अहम वजह यह भी है कि बेमौसम बारिश औेर शीत लहर से बहुत से राज्यों में फसलों को नुकसान होने का अनुमान है।

बेमौसम बरसात से सरसों और आलू की फसलों को नुकसान होगा। अर्जेंटीना को अमेरिका से सोया ऑयल की आपूर्ति रुकने की आशंका से पाम ऑयल में तेजी है। वहीं, इंडोनेशिया और मलेशिया में संभावित बाढ़ से पाम तेल की आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है। इंडोनेशिया और मलेशिया में संभावित बाढ़ से पाम तेल की आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है। बर्ड फ्लू का असर भी पड़ने की आशंका है। ये सारे कमोडिटी की कीमत बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

जाने-माने कृषि, खाद्य और व्यापार नीति विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने हिन्दुस्तान को बताया कि घरेलू बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी की एक बड़ी वजह है वैश्विक बाजारों में तेजी। दुनियाभार के बाजार में चावल, खाद्य तेल समेत, दाल की कीमतों में तेजी का दौर जारी है। वियतनाम में चावल की कीमत नौ साल के उच्चतर स्तर पर पहुंच गई है। वह भारत से चावल का आयात कर रहा है। कॉरपोरेट का झुकाव कृषि की ओर इसी कारण हुआ है। कंपनियों को लगने लगा है कि खाद्य पदार्थो की बढ़ती का फायदा उठाकर वो मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।

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