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जानिए मई महीनें की पहली एकादशी तिथि और पढ़िए पूरी पूजा विधि

Know the first Ekadashi date of May and read the method of worship

Know the first Ekadashi date of May and read the method of worship

बता दे हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को बेहद शुभ माना जाता है। सालभर में कुल 24 और हर महीने पक्ष कृष्ण व शुक्ल पक्ष में 2 एकादशी तिथियां आती है। यह तिथि भगवान श्रीहरि को समर्पित है। ऐसे में इस शुभ तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा व व्रत रखने का विशेष महत्व है। वैशाख मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को वरुथिनी या बरुथिनी एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा व व्रत करने से जीवन की समस्याएं दूर होकर मनचाहा फल मिलता है।

तो चलिए जानते हैं वरुथिनी या बरुथिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, महत्व व पूजा विधि…

बरुथिनी एकादशी 2021 शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि- 6 मई 2021, गुरुवार, दोपहर 02:10 मिनट से 07 मई 2021, शुक्रवार की शाम 03:32 मिनट तकद्वादशी तिथि 08 मई 2021, शनिवार, शाम 05:35 मिनट पर समाप्त होगी। देखा जाए तो उदयव्यापिनी तिथि 07 मई को पड़ रही है। इसलिए वरुथिनी एकादशी का व्रत 07 मई को रखा जाएगा।

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एकादशी व्रत पारण समय

08 मई 2021, शनिवार, सुबह 05:35 मिनट से 08:16 मिनट तक रहेगी। इसतरह पारण की कुल अवधि 02:41 मिनट रहेगी।

बरुथिनी या वरुथिनी एकादशी महत्व
मान्यता है कि इस तिथि पर श्रीहरि की पूजा व व्रत रखने से शुभफल मिलता है। जीवन की समस्याएं दूर होकर खुशियों का आगमन होता है। धन संबंधी परेशानी दूर होती है। माना जाता है कि एकादशी का व्रत कन्यादान और सालों तक तप के बराबर पुण्य देने के बराबर होता है। साथ ही व्यक्ति को मोक्ष मिलता है।

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एकादशी पूजा विधि
इस शुभ तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहने।. फिर व्रत रखने का संकल्‍प लें। घर के पूजा स्थल को साफ करके वेदी बनाएं। वेदी पर उड़द, मूंग, जौ, चावल, मूंग, चना व बाजरा 7 धान रखें। एक कलश में पानी भरकर उसपर अशोक या आम वृक्ष के 5 पत्ते रखें। कलश को वेदी के ऊपर रखें। अब वेदी पर श्रीहरि की मूर्ति या तस्‍वीर स्थापित करें। फिर भगवान विष्‍णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल चढ़ाएं। धूप-दीप जलाकर विष्‍णु की आरती उतार कर उन्हें भोग लगाएं। संध्या समय भगवान विष्‍णु की आरती उतारें। उसके बाद फलाहार का सेवन करें। इस दिन रात को सोने की जगह भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें। अगली सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन खिलाएं। साथ ही अपने सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा दें।. इसके बाद खुद भोजन खाएं और व्रत का पारण करें।

 

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