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जानिए भगवान शिव से जुड़ी ये बातें, जो उन्हें बनाती है ‘देवों के देव महादेव’

shankar bhagwan

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भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है। वह पंचदेवों के प्रधान के रूप में माने जाते हैं। वह अनादि परमेश्वर हैं और आगम-निगम आदि शास्त्रों के अधिष्ठाता भी हैं। शिव को ही संसार में जीव चेतना का संचार कहा गया है। इस तरह भगवान शिव और शक्ति स्‍वरूपा मां पार्वती ही इस जगत और ब्रह्मांड में अपनी विशेष भूमिका का निर्वहन करते हैं। शिव महापुराण के अनुसार स्वयं भगवान शिव ही हैं जिन्‍होंने ब्रह्मा को वेद का ज्ञान दिया। ऐसी ही कई बातें शिव पुराण में मौजूद हैं।

आइए जानते हैं शिव से जुड़ी कुछ और बातें-

>> मान्यता के अनुसार, ‘कोटि रुद्र संहिता’ और ‘शत रुद्र संहिता’ में भगवान शिव के तेज का पुंज जागृत हुआ जिससे विष्णु की उत्पत्ति हुई। विष्णु के नाभि कमल पर ब्रह्मा की उत्पत्ति का उल्लेख है।

>> शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार करते हैं। जबकि ब्रहमा सृष्टि की उत्पत्तिकर्ता हैं। इस तरह शिव प्रथम, विष्णु द्वितीय तथा ब्रह्मा तृतीय स्थान पर हैं। जबकि सांसारिक मान्यताओं में ब्रह्मा को प्रथम, विष्णु को द्वितीय तथा शिव को तृतीय प्रलयकारी के रूप में जाना जाता है।

>> वह परम शक्तिशाली शिव ही हैं जिन्‍होंने सृष्टि की उत्पत्ति और जगत के विस्तार, विकास के अलावा ब्रह्मस्वरूप को स्‍थापित किया. जिससे ‘हम क्या है, कैसे हैं, कहां से आए हैं, अंत और प्रारंभ क्या है, कर्म के आधार पर हमारे प्रारब्ध क्या होंगे’, इन अवस्थाओं का उपनिषदीय ज्ञान ऋषियों के माध्यम से हमारे सामने रखा।

>> शिव एकमात्र परम अघोरी हैं जिनके माध्‍यम से संसार की समस्त दिव्य शक्तियां, क्रियाएं और प्राकृतिक दृष्टिकोण संबंधी ज्ञान हमें प्राप्त होता है। वह वर्ण व्यवस्था के साथ आश्रम व्यवस्था को भी हमें ज्ञान देने वाले हैं। अध्यात्मवाद के अनुसार, शिव तमाम अवस्थाओं और व्यवस्थाओं को अपने अंश मात्र से धारण किए हुए हैं।

>> शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो संसार का प्रबंधन संभालते हैं। उन्हीं के माध्‍यम से हमें ज्ञान वैराग्य जैसे मूलभूत दिव्य साधनाओं की जानकारी मिलती है। पूरे ब्रह्मांड के समग्र में भगवान शिव का परम तेज बिंदु ही अपनी गति से समस्त जीवात्माओं को प्रकाशित करता है। ये सभी जीवात्माएं शिव के उस स्वरूप का दर्शन व अनुभव करती हैं।

शिव ही परम गुरु हैं। उनकी ही कृपा से हमें जीवन को बेहतर बनाने की कला, वर्तमान से संघर्ष करते हुए समस्त विकारों पर नियंत्रण करके जीवन यात्रा को विजयी बनाने का ज्ञान मिलता है। शिव के जीवन से हमें गृहस्थ और संन्यास का दर्शन प्राप्‍त होता है।

 

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