धर्म डेस्क। परिवर्तिनी एकादशी व्रत 29 अगस्त शनिवार को रखा जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी अपने शयन मुद्रा में करवट बदलते हैं। करवट बदलने से उनके स्थान में परिवर्तन हो जाता है इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। कहते हैं परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से व्रती को वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। इस एकादशी के दिन विष्णु जी के वामन रूप की पूजा होती है। पद्म पुराण में स्वयं श्रीकृष्ण जी ने कहा है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करनी चाहिए क्योंकि भगवान इन चार महीनों में वामन रूप में पाताल में निवास करते हैं।
परिवर्तिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
- एकादशी तिथि आरंभ – 28 अगस्त, शुक्रवार – सुबह 08 बजकर 38 मिनट से
- एकादशी तिथि समाप्त – 29 अगस्त, शनिवार – सुबह 08 बजकर 17 मिनट तक
- पारण का समय – 30 अगस्त, रविवार – सुबह 05:58 बजे से 08:21 बजे तक
परिवर्तिनी एकादशी व्रत विधि
- सुबह जल्दी उठें। शौचादि से निवृत्त होकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु जी की प्रतिमा को गंगा जल से नहलाएं।
- अब दीपक जलाकर उनका स्मरण करें और भगवान विष्णु की पूजा में उनकी स्तुति करें।
- पूजा में तुलसी के पत्तों का भी प्रयोग करें तथा पूजा के अंत में विष्णु आरती करें।
- शाम को भी भगवान विष्णु जी के समक्ष दीपक जलाकर उनकी आराधना करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। द्वादशी के समय शुद्ध होकर व्रत पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें।
- लोगों में प्रसाद बांटें और ब्राह्मणों को भोजन कर कराकर उन्हें दान-दक्षिणा दें।
परिवर्तिनी एकादशी मंत्र
ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।। शांताकारं भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम। विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम। लक्ष्मीकान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा। ओम नमो नारायणा।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
पुराणों के अनुसार राजा बलि ने अपने प्रताप के बल पर तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था। एक बार भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा ली। राजा बलि किसी भी ब्राह्राण को कभी भी निराश नहीं करता था। वामन रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग जमीन देने का वचन मांग लिया। भगवान विष्णु ने दो पग में समस्त लोकों को नाप लिया। जब तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना वचन पूरा करने के लिए अपना सिर वामन ब्राह्राण के पैर के नीचे रख दिया। राजा बलि पाताल लोक में समाने लगे तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को भी अपने साथ रहने के लिए आग्रह किया और भगवान विष्णु ने पाताल लोक चलाने का वचन दिया।