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जानिए क्या है नेशनल हेराल्ड केस, जिसने उड़ा दी कांग्रेस की नींद

National Herald

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नई दिल्ली। देश में नेशनल हेराल्ड केस (National Herald Case) चर्चा में है। चर्चा की वजह है प्रवर्तन निदेशालय (ED) का कांग्रेस नेता सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को भेजा गया समन। इस समन में उन्हें ईडी के सामने पेश होने को कहा गया है। चूंकि सोनिया गांधी कोविड से जूझ रही हैं और अस्पताल में भर्ती हैं इसलिए राहुल गांधी की पेशी को कांग्रेस ने शक्ति प्रदर्शन का रूप दिया है। नेशनल हेराल्ड केस में राहुल गांधी की पेशी होने पर कांग्रेस ने केंद्र पर आरोप लगाया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को मोदी सरकार परेशान कर रही है, लेकिन हम झुकेंगे नहीं। सभी नेता पार्टी मुख्यालय 24 अकबर रोड से प्रदर्शन करके ED के ऑफिस तक जाएंगे और विरोध जताएंगे।

नेशनल हेराल्ड (National Herald) मामले के इर्द-गिर्द चल रही राजनीति को जानने से पहले ये समझना जरूरी है कि नेशनल हेराल्ड केस आखिर है क्या? इसमें कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के नाम कैसे आए और अब तक इस मामले में क्या हुआ है, जानिए इन सवालों के जवाब

क्या है नेशनल हेराल्ड (National Herald) केस?

यह पूरा मामला नेशनल हेराल्ड (National Herald) नाम के अखबार से जुड़ा है, जो आजादी से पहले का अखबार रहा है। इस अखबार के प्रकाशन का जिम्मा प्रकाशन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (Associated Journals Limited) नाम की कंपनी के पास था। इस अखबार की शुरुआत 1938 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने की थी। इनके अलावा करीब 5 हजार स्वतंत्रता सेनानी भी इसके शेयर होल्डर थे। प्रकाशन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड इसके अलावा दो और दैनिक अखबार निकालती थी। हिन्दी के समाचार पत्र का नाम नवजीवन और उर्दू भाषा वाले अखबार का नाम कौमी आवाज था।

इस अखबर के जरिए स्वतंत्रता सेनानी अपनी आवाज को पुरजोर तरीके से उठाते थे, यही बात अंग्रेजों को नापसंद थी। इस तरह धीरे-धीरे यह अखबार स्वतंत्रता सेनानियों का मुखपत्र बन गया। ब्रिटिश सरकार के कामों की कड़ी समीक्षा और आलोचना करने वाला यह अखबार अंग्रेजों के आंखों की किरकरी बन गया। नतीजा, 1942 में अंग्रेजों ने नेशनल हेराल्ड अखबार को बैन कर दिया।

कांग्रेस की नीतियों को जनता तक पहुंचाने का जरिया बना

नेशनल हेराल्ड (National Herald) को 1945 में दोबारा शुरू किया गया। 1947 में आजादी मिलने के बाद जवाहर लाल नेहरू ने अखबार के बोर्ड अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद अखबार लगातार प्रकाशित किया गया और कांग्रेस की नीतियों को जनता तक पहुंचाने का जरिया बन गया।

असली दिक्कत यहां से शुरू हुई

1962-63 में दिल्ली-मथुरा रोड रोड के 5-A बहादुर शाह जफर मार्ग पर एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) को 0.3365 एकड़ जमीन आवंटित की गई। जमीन आवंटित करते हुए यह शर्त रखी गई कि इस भूमि पर बनने वाली बिल्डिंग का निर्माण किसी और काम के लिए नहीं होगा। साल 2008 में कांग्रेस की यूपीए सरकार सत्ता में थी, तब एक बार फिर इस अखबार का प्रकाशन बंद किया गया। वजह बताई कि कंपनी घाटे में है इसलिए यह फैसला लिया गया है।

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2011 में घाटे में चल रही इस कंपनी की होल्डिंग यंग इंडिया लिमिटेड को ट्रांसफर कर दी गई। यंग इंडिया लिमिटेड की एंट्री यंग इंडिया लिमिटेड (YIL) एक कंपनी है। इसकी शुरुआत साल 2010 में हुई। राहुल गांधी तब समय कांग्रेस महासचिव थे और वही इस कंपनी के डायरेक्टर भी बने थे। इसके सबसे ज्यादा 38-38 फीसदी शेयर राहुल गांधी और सोनिया गांधी के नाम थे। अन्य 24 फीसदी शेयर होल्डर में कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीज, पत्रकार सुमन दुबे, और कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा शामिल थे।

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा मोड़ 2012 में आया, जब भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आरोप लगाते हुए निचली अदालत में एक शिकायत दर्ज करवाई। उन्होंने कहा, यंग इंडिया लिमिटेड द्वारा एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के अधिग्रहण में धोखाधड़ी और विश्वासघात किया गया। इस धोखाधड़ी में कांग्रेस के कुछ नेता शामिल थे।

इसलिए पूरे मामले में सोनिया-राहुल का नाम आगे है

आरोप लगाया कि गांधी परिवार ने कांग्रेस पार्टी के फंड का इस्तेमाल करके AJL का अधिग्रहण किया और इस कंपनी की 2000 करोड़ की सम्पत्ति पर कब्जा करने की कोशिश की।

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स्वामी में शिकायत में लिखा कि यंग इंडिया ने AJL की दिल्ली-एनसीआर, लखनऊ, मुंबई और दूसरे शहरों में मौजूद संपत्तियों पर कब्जा किया। इसको लेकर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर छल के जरिए सम्पत्ति पर अधिग्रहण करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, AJL को दिया गया ऋण अवैध है, क्योंकि इसे पार्टी के फंड से दिया गया थाा।

कांग्रेस ने कहा, स्वामी की शिकायत राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित

स्वामी के आरोपों के बाद कांग्रेस ने अपना पक्ष रखा। पार्टी ने कहा, यह मामला राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है। प्रकाशन कंपनी AJL की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण कांग्रेस ने उसे बचाने की कोशिश सिर्फ इसलिए की क्योंकि पार्टी विरासत को सहेजना चाहती थी। पूरी सम्पत्ति को लेकर कोई हस्तांतरण या परिवर्तन नहीं हुआ है। हालांकि इसके बाद कई बार भाजपा और कांग्रेस की जुबानी जंग भी हुई।

2014 में हुई ED की एंट्री

इस पूरे मामले में मनी लॉड्रिंग हुई है या नहीं, इसकी जांच करने के लिए इस पूरे मामले में 2014 में ED की एंट्री हुई। जानिए कब-कब क्या हुआ…

जून 2014: अदालत ने सोनिया और राहुल को आरोपी के रूप में समन किया।

सितंबर 2015: ED ने इस केस की जांच शुरू की।

दिसंबर 2015: सोनिया गांधी और राहुल गांधी इस मामले में पटियाला कोर्ट में पेश हुए और उन्हें जमानत मिली। सुनवाई जारी रही और सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

अक्टूबर 2018: दिल्ली हाई कोर्ट ने AJL को बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित हेराल्ड हाउस को खाली करने का आदेश दिया। जिसके कहा गया कि इस बिल्डिंग का इस्तेमाल व्यावसायिक उद्देश्य के लिए हो रहा है।

फरवरी 2019: गांधी परिवार इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा।

अप्रैल 2019: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी।

जून 2022: ED ने सोनिया और राहुल को हाजिर होने का नोटिस भेजा।

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