बाबरी मस्जिद के भीतर 1949 में रामलला की प्रतिमा स्थापित कर दी गई थी और तभी से अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि का यह क्षेत्र विवादास्पद हो गया था। हालांकि 1992 तक किसी बड़ी हिंसा की स्थिति नहीं बनी थी। कोर्ट और प्रशासन की व्यवस्था के हिसाब से एक पुजारी रामलला की पूजा अर्चना के लिए नियुक्त किया गया था। 1992 में बाबरी विध्वंस से करीब नौ महीने पहले से पुजारी के तौर पर आचार्य सत्येंद्र दास रामलला की पूजा करते रहे हैं।
पिछले साल जब सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद रहे इस केस में फैसला सुनाकर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ किया, तब से सत्येंद्र दास के पुजारी के तौर पर बने रहने पर सवालिया निशान लग गया है। अब जब भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलान्यास हो चुका है, तो जानिए कि रामलला के प्रधान पुजारी सत्येंद्र दास को कैसे नियुक्ति मिली थी। कितना वेतन मिलता रहा और यह भी कि यहां प्रधान पुजारी से पहले वह क्या कर रहे थे।
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मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने एक इंटरव्यू में कहा था कि भारी सुरक्षा और प्रतिबंधों के बीच लंबे समय तक नियमित रूप से रामलला की पूजा करते हुए उन्हें हमेशा लगता था कि यहां एक न एक दिन भव्य मंदिर ज़रूर बनेगा। 5 मार्च 1992 को विवादित स्थल के रिसीवर ने उन्हें पुजारी के तौर पर यहां नियुक्त किया था, तब से नियमित रूप से दास रामलला की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।
1992 में जब नियुक्ति हुई थी, तब आचार्य सत्येंद्र दास का वेतन 100 रुपये महीने था। लेकिन पिछले कुछ सालों से इस वेतन में बढ़ोत्तरी का सिलसिा शुरू हुआ। साल 2018 तक केवल 12 हजार मासिक मानदेय उन्हें मिलता था, जबकि 2019 में रिसीवर व अयोध्या के कमिश्नर के निर्देश के बाद यह वेतन 13 हजार रुपये कर दिया गया। दास के मुताबिक उनके घर का खर्च शिक्षक की नौकरी के वेतन से चलता रहा।
आचार्य सत्येंद्र दास के रामलला विवादित स्थल के पुजारी बनने की घटना इतिहास के कुछ पन्नों से भी धूल हटाती है। 1992 में रामलला के पुजारी महंत लालदास थे। उस समय तक रिसीवर को रिटायर्ड जज को रिपोर्ट करना होता था। फरवरी 1992 में जब रिसीवर का निधन हुआ, तब राम जन्मभूमि के विवादित स्थल की ज़िम्मेदारियां जिला प्रशासन के पास गईं और तब महंत लालदास को हटाए जाने की चर्चाएं थीं।
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एक अन्य इंटरव्यू में दास ने बताया था कि उस समय भाजपा सांसद विनय कटियार और विश्व हिंदू परिषद के कुछ नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध थे। सबने मिलकर उनका नाम तय किया, जिसमें विहिप के तत्कालीन प्रमुख अशोक सिंघल की सहमति भी थी। इस तरह उनकी नियुक्ति हो गई जबकि वह साथ में संस्कृत कॉलेज में अध्यापन भी कर रहे थे। दास को नियुक्ति के साथ ही 4 सहयोगी पुजारियों को नियुक्त करने का अधिकार भी दिया गया।