हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्त्व है। उसमें भी कन्या पूजन का और अधिक महत्त्व है। इन दिनों नवरात्रि का त्योहार चल रहा है। वैसे तो कन्या पूजन नवरात्रि की सप्तमी से शुरू हो जाती है। सप्तमी के दिन से ही कन्याओं का आदर सत्कार किया जाता है। नवरात्रि के दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन कन्या को दुर्गा के नव रूपों के स्वरूप में पूजन किया जाता है।
हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि कन्याओं को नव देवी का स्वरूप मानकर आदर सत्कार किया जाता है तो देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों को यश-धन और वैभव प्रदान करती हैं।
हिंदू धर्म के मुताबिक़, नवरात्रि में कन्या पूजन के लिए लड़कियों की उम्र 2 साल से 9 साल के बीच होनी चाहिए। आप चाहें तो 9 साल से ऊपर की कन्याओं को भी भोजन करा सकते हैं। इसके साथ एक बालाक भी होना चाहिए। जिसकी पूजा भैरव के रूप में होती। माना जाता है कि जैसे भैरव के बिना नव दुर्गा की पूजा अधूरी होती है, वैसे कन्या पूजन में एक बालक की जरूरत होती है. जिसे भैरव माना जाता है।
पूजन विधि-
कन्या पूजन के लिए एक दिन पहले कन्याओं को आमंत्रित किया जाना चाहिए। उसके बाद अगले दिन कन्याओं के आने पर उनके पैर को दूध से भरे थाल में रखकर धोना चाहिए।
उसके बाद उनका पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए। इसके बाद अक्षत, फूल, कुमकुम का टीका लगाना चाहिए। फिर उन्हें भोजन के लिए स्वच्छ और साफ स्थान पर लाकर खाना खिलाना चाहिए।
भोजन के बाद उन्हें यथा शक्ति दक्षिणा / उपहार प्रदान करना चाहिए। बिदाई करते समय पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए।