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जानें नवरात्रि में क्यों की जाती है मां के नौ रूपों की पूजा, क्या है कलश स्थापना का महत्व

Chaitra Navratri

Chaitra Navratri

हिंदू पंचाग के अनुसार एक वर्ष में 4 बार नवरात्रि मनाई जाती है जिनमें से 2 गुप्त नवरात्रि होती है और 2 नवरात्रि धूमधाम से मनाई जाती है। आपको बता दें कि चैत्र और शारदीय मुख्य नवरात्रि हैं। जिसे देशभर में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

नवरात्रि में 9 दिनों तक मां शक्ति के 9 रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दिनों को काफी पवित्र माना जाता है। इन दिनों में कोई भी शुभ काम किए जा सकते हैं। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर (गुरुवार) से हो रही है जिसका समापन 15 अक्टूबर (शुक्रवार) को होगा। दरअसल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है।पुराणों में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं शारदीय नवरात्रि में क्यों की जाती है मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा और क्या है कलश स्थापना का महत्व।

क्यों होती है मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा

नवरात्रि पर मां दूर्गा की पूजा की जाती है। बंगाल में इसे दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के पहले दिन मां शक्ति की स्थापना की जाती है और समापन के दिन उनका विसर्जन कर दिया जाता है। हर साल पितृ पक्ष के बाद ही नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस समय पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। 9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में हर दिन अलग-अलग देवी को समर्पित है।

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शुरुआत के तीन दिनों में मां दुर्गा की शक्ति और ऊर्जा रूप की पूजा की जाती है। इसके बाद के तीन दिन यानी चौथे, पांचवे और छठे दिन जीवन में शांति देने वाली माता लक्ष्मी जी को पूजा जाती है। सातवें दिन कला और ज्ञान की देवी को पूजा जाता है। वहीं आठवां दिन देवी महागौरी को समर्पित होता है। आखिरी दिन यानी नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है।

कलश स्थापना का महत्व

शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि का पहला दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। प्रतिपदा तिथि यानी नवरात्रि के पहले दिन ही कलश स्थापना की जाती है। मान्यता है कि कलश को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। इसलिए नवरात्रि पूजा से पहले घट स्थापना या कलश की स्थापना की जाती है।

कलश स्थापना की विधि

कलश स्थापित करने के लिए सुबह उठकर स्नान करके साफ कपड़ें पहन लें। मंदिर की साफ-सफाई करके एक सफेद या लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद उसके ऊपर एक चावल की ढेरी बनाएं। एक मिट्टी के बर्तन में थोड़े से जौ बोएं और इसका ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं और कलावा बांधे। एक नारियल लेकर उसके ऊपर चुन्नी लपेटें और कलावे से बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें।

कलश के अंदर एक साबूत सुपारी, अक्षत और सिक्का डालें। अशोक के पत्ते कलश के ऊपर रखकर नारियल रख दें। नारियल रखते हुए मां दुर्गा की पूजा करें। अब दीप जलाकर कलश की पूजा करें। स्थापना के समय आप सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी किसी भी कलश का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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